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युद्ध कोई लड़े, वह हमारे विरुद्ध है…

-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर।

जब युद्ध दो देशों के मध्य चल रहा होता है तब उससे अप्रभावित देशों की जनता सोचती है कि उन्हें क्या लेना-देना, उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। तो यह गलत सोचते हैं लोग। कोई भी आधुनिक युद्ध प्रत्येक मानव या कहें प्रत्येक जीवन के विरुद्ध होता है। युद्ध में कोई भी अस्त्र चलाया जा रहा हो, उससे आग की वर्षात होती है और धुंआँ का गुबार उठता है।

हम विश्व पर्यावरण दिवस मनाकर अपने दायित्व का निर्वहण समझकर निश्चिंत हो जाते हैं। पेड़ न काटें, अनावश्यक पानी न ढोलें, धुआँ न उड़ायें, सिग्नल पर गाड़ी बन्द कर लें इत्यादि स्लोगन या नारे लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। पर्यावरण यदि किसी से सर्वाधिक प्रदूषित हो रहा है तो वह है आग और धुआँ। इनसे सीधा-सीधा पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, क्योंकि सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाइ आक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस आक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता है, जो कि हानिकारक है। पृथ्वी के नजदीक स्ट्रेटोस्फीयर है जिसमें ओजोन स्तर होता है। यह स्तर सूर्यप्रकाश की पराबैगनी किरणों को शोषित कर उसे पृथ्वी तक पहुँचने से रोकता है। ओजोन परत, हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है। जो हमें सूर्य से आनेवाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। आज ओजोन स्तर का तेजी से विघटन हो रहा है, वातावरण में स्थित क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस के कारण ओजोन स्तर का विघटन हो रहा है। ओजोन स्तर के घटने के कारण ध्रुवीय प्रदेशों पर जमा बर्फ पिघलने लगी है तथा मानव को अनेक प्रकार के चर्म रोगों का सामना करना पड़ रहा है।

दिल्ली जैसे शहर प्रदूषण के बादलों से ढँक जा रहे हैं। हमारे द्वारा उपयोग किये जा रहे रेफ्रिजरेटर और एयरकण्डीशनर में से फ्रियोन और क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस के कारण ये समस्यायें पहले से ही गंभीर रूप ले रहीं हैं। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के कारण तो वायु प्रदूषित हो ही रही है। मानव कृतियों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़े जाने से जल भी प्रदूषित हो रहा है। विषैली वायु में श्वास लेने से दमा, तपेदिक और कैंसर आदि भयानक रोग हो रहेे हैं, जिससे मनुष्य का जीवन संकटमय हो गया है। आजकल बड़ी फैक्टरियों और कारखानों के हजारों टन दूषित रासायनिक द्रव्य नदियों में बहाए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रहता। अर्थात् हम पहले ही जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और मृदा प्रदूषण फैला रहे हैं। तिस पर विस्तारवाद की नीति, प्रभुत्व की आकांक्षा, मूछ की लड़ाई और अहंकार के पोषण के लिए एक देश दूसरे पर हमला कर दे रहा है। और सैन्य ठिकानों के अतिरिक्त सबसे पहले तेल स्रोतों, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और गैस स्रोतों पर हमला किया जाता है, जिससे भारी प्रदूषण उत्सर्जित होता है; जो किसी एक देश की जनता को अपने हमले का शिकार नहीं बनाता, वह किसी देश में भेद-भाव नहीं जानता, वह यह नहीं जानता कि इसका दोषी कौन है। वह तो जीव मात्र को हानि पहुँचाता है। उसका गमनागमन क्षेत्र सम्पूर्ण वायुमण्डल है। इसलिए युद्ध कोई भी लड़े, वह हमारे विरुद्ध ही होता है। सम्पूर्ण मानव जाति के विरुद्ध होता है, बल्कि समस्त जीवन के विरुद्ध होता है, इसलिए सभी का दायित्व है कि ऐसे कार्यों को भड़कायें नहीं बल्कि शांत करने का प्रयास करें।

-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर।

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