स्वामी चिदानन्द सरस्वती का गुरूकुल के आचार्यों और ऋषिकुमारों ने शंख ध्वनि, पुष्प वर्षा व वेदमंत्रों से किया दिव्य व भव्य अभिनन्दन

  • स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रक्षाबंधन के साथ वृक्षाबंधन का दिया संदेश
  • युवा पुरूषों को रक्षाबंधन के वास्तविक अर्थ समझना होगा
  • परिवार जनों व माताओं को विशेष कर अपने पुत्रों को रक्षाबंधन के मर्म का समझाना होगा
  • फिर इस देश की किसी बेटी के साथ ऐसा न हो जैसा कोलकाता में डाक्टर बेटी के साथ हुआ
“विश्व मानवतावादी दिवस – बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रही हिंसा की कड़ी निंदा करते हुये स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में पूरे विश्व का एक ही धर्म है वह है मानवता; एक ही संस्कृति है वह है सनातन। सनातन अर्थात जो सब के लिये है, जो सदा के लिये है और जो सब को साथ लेकर चलता है। वास्तव में समानता, सद्भाव व समरसता का उत्सव ही तो सनातन है।”

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को रक्षाबंधन की शुभकामनायें देते हुये कहा कि यह पर्व बहन और भाई के अटूट प्रेम का प्रतीक है। अब समय आ गया कि बहनें, भाईयों की कलाई पर राखी बांधने के साथ अब वृक्षों को भी राखी बांधकर उनके संरक्षण का संकल्प लें। अभी तक प्रकृति और पर्यावरण हमारी सुरक्षा करते आये हैं अब हमारी बारी हैं। रक्षाबंधन व वृक्षाबंधन दोनों ही हमारे समाज के लिये जरूरी है। रक्षाबंधन से परम्परा बचती है और वृक्षाबंधन से पर्यावरण बचता है। आज परम्परा व पर्यावरण संरक्षण का दिव्य महोत्सव है।
भारतीय पर्व त्योहार और सभी परंपराएं किसी न किसी रूप में प्रकृति और पर्यावरण से ही जुड़ी हुई हैं। पर्वों और त्योहारों को हम प्रकृति संरक्षण के प्रतीक के रूप में मनाते है, रक्षाबंधन का पर्व भी उनमें से एक है। इस रक्षाबंधन पर पेड़ों को बांधे वृक्षाबंधन। वृक्षाबंधन अर्थात सब मिलकर पेड़ों को राखी बांधना और उन्हें गले लगाना। पेड़ों से प्रार्थना करना कि हे पेड़ हम आज वचन देते है कि हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। ऐसे अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक उदाहरण हैं, जिसमें राखी का धागा धर्म और कर्म दोनों का निर्वहन करता है। राखी का यह बंधन, कल्याण की कामना, स्नेह की भावना और सबके लिये सुख-समृद्धि लाये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनायें। हम अपने पारिवारिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को एक साथ निभायें। परिवार व प्रकृति के बीच संयोजन और सामंजस्य बनाये रखे।
स्वामी जी ने कहा कि रक्षाबंधन एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है। यह पर्व केवल अपनी ही बहन नहीं बल्कि पूरी नारी शक्ति के सम्मान, आदर व सुरक्षा का संदेश देता है। युवा पुरूषों को इस पर्व के वास्तविक अर्थ समझना होगा और परिवार जनों व माताओं को विशेष कर अपने पुत्रों को रक्षाबंधन के मर्म का समझाना होगा ताकि फिर इस देश की किसी बेटी के साथ ऐसा न हो जैसा कोलकाता में डाक्टर बेटी के साथ हुआ। स्वामी जी ने डाक्टर बेटी के साथ जो हुआ उस पर गहरी संवेदनायें व्यक्त की।
स्वामी जी ने कहा कि आज विश्व मानवतावादी दिवस भी हैं। इस दिन का उद्देश्य मानवतावादी कार्यकर्ताओं को सम्मानित करना और मानवतावादी गतिविधियों को बढ़ावा देना है। दुनिया भर में जो जरूरतमंद लोगों हैं उनकी रक्षा और सहायता के लिये हर सम्भव प्रयास करना जरूरी है। आज का दिन दुनिया भर में जो लोगों पीड़ित व प्रताड़ित है उनकी जान बचाने और उनकी रक्षा करने के लिये मनाया जाता है। आपदाग्रस्त, संकटग्रस्त व प्रताड़ित हो रहे लोगों की सहायता करना, स्वतंत्रता के मूल्यों को कायम रखना, सेवा के प्रति प्रतिबद्धता ही सच्ची मानवता है। सभी के अस्तित्व, कल्याण व सम्मान को बनाये रखना ही आज के दिन का उद्देश्य है।
स्वामी जी ने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रही हिंसा की कड़ी निंदा करते हुये कहा कि वर्तमान समय में पूरे विश्व का एक ही धर्म है वह है मानवता; एक ही संस्कृति है वह है सनातन। सनातन अर्थात जो सब के लिये है, जो सदा के लिये है और जो सब को साथ लेकर चलता है। वास्तव में समानता, सद्भाव व समरसता का उत्सव ही तो सनातन है। सनातन है तो हम हैं, सनातन है तो संस्कार, संस्कृति और जीवन मूल्य है। अगर आज का युवा सनातन की अखंड ज्योति; सनातन की मशाल को लेकर आगे बढ़ते रहे तो कोई वाद-विवाद ही नहीं होंगे क्योंकि सनातन संस्कृति जीओ और जीने दो की नहीं है बल्कि जीओ और जीवन दो की है। सनातन मूल्य दुनिया को शान्ति और समृद्धि की ओर ले जाने में सक्षम है। सनातन है तो शान्ति व सौहार्द है। इसी भाव से रक्षाबंधन का पर्व मनायें।

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