इस्लाम में औरत और आदमी में समानता नहीं, ”मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” करने जा रहा बड़ी पहल

नई दिल्ली। इस्लाम औरत और आदमी में कोई भेद नहीं करता, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। पंथ के आधार पर अब तक की सभी हदीसों के हवाले देख लिए जाएं या व्यवहार में जो दोनों के लिए पांथि‍क आज्ञाएं और समाज की व्यवस्था दी गई है, उससे साफ नजर आता है कि इस्लाम आदमी और औरत में कोई एक स्तर का नहीं। इसमें अनेक जगह भेद, विभेद और अंतर दिखाई देता है। इसके इस भेद को कम से कम भारत में कैसे कम किया जा सकता है, किसी हद तक समाप्त किया जा सकता है, इसके लिए ”मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” प्रयास कर रहा है।

मस्‍ज‍िद ख़ुदा का घर फिर भी स्‍त्र‍ियों के लिए है अब तक बंद 
इसे स्‍वीकार करने में किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए और यह न ही इस्‍लाम की आलोचना है। यह बड़ा प्रश्‍न है कि  ‘मस्‍ज‍िद ख़ुदा का घर है तो यह ईमान वाली स्‍त्र‍ियों के लिए कैसे बंद हो सकता है’? उर्दू के विख्यात कथाकार राशिदुल ख़ैरी की बात यहां याद आती है, अपनी पत्रिका और पुस्तक आलम-ए-निस्वां अर्थात औरतों की दुनिया में वे लिखते हैं कि ‘कुंवारी लड़कियां मां-बाप के पास शौहरों की अमानत हैं…हम पहले उनको मुसलमान बीवी, मुसलमान बेटी और मुसलमान घरवाली देखना चाहते हैं, उसके बाद शैदा-ए-क़ौम अर्थात क़ौम से मोहब्बत करने वाली, सक्षम और प्रभावशाली वक्ता एवं लाएक़ मुहर्रिर अर्थात क्लर्क/लेखिका…निसाब-ए-तालीम (पाठ्यक्रम) में मज़हब रुक्न-ए-अव्वल (पहला स्तम्भ) हो इस रूप में देखना चाहते हैं’।

मर्द होने पर इस्‍लाम में मिलती है अनेक छूट
अनेक हदीसों में इस बात का विस्‍तार से वर्णन है कि इस्लाम में बीवी की हर उस कोशिश को जो शौहर का दिल मुसख़्ख़र करने के वास्ते की जाती है, वह सभी जायज़ है। यहां समझ लें कि मुसख़्ख़र का अर्थ हुआ शौहर का दिल मोह लेने या जीत लेने के लिए किया जाने वाला काम। मतलब शौहर की रज़ा ही यहां सब कुछ है।मर्द होने पर यह छूट है कि सुविधानुसार दो-चार शादी आराम से कर सकते हैं, लेकिन किसी एक औरत के लिए यह मज़हबी नियम लागू नहीं। औरत तो यहां हर हाल में पुरुष की या कहें मर्दों की बांदी है। कयामत की रात को पुरुषों को तो 72 हूरें मिल जाएंगी पर मुसलमान औरतों के लिए इसका कहीं कोई जिक्र नहीं। उन्‍हें कितने हूरा अथवा पुरुष मिलेंगे या वे अपनी मनमर्जी से उनका चुनाव कर पाएंगी, इसके बारे में कहीं कुछ लिखा हुआ नहीं मिलता, सभी हदीसें जैसे इस मसले पर मौन हो गई हैं।

इस्‍लाम को हलाला से भी मुक्‍त करने की जरूरत 
हलाला भी एक ऐसी ही कुप्रथा है, जिसने आज इस्‍लामियत पर अनेक प्रश्‍न खड़े कर रखे हैं, । मुस्लिम समाज में जब भी कभी शौहर और बीवी का तलाक होता है और वे यदि दोबारा से एक साथ रहना चाहे या कहें दोबारा से निकाह करना चाहें, तो उसके लिए हलाला से औरत को गुजरना पड़ता है। हलाला के अनुसार उस व्यक्ति और उस महिला की दोबारा शादी तब तक नहीं हो सकती जब तक कि महिला किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करके कुछ दिन उस व्यक्ति के साथ न बिता ले, तत्पश्चात उस व्यक्ति से तलाक लेने के बाद ही वह अपने पूर्व पति से शादी कर सकती है, यही हलाला है।

खतना भी है इस्‍लाम में महिलाओं के लिए एक खतरा 
इन सभी संकटों के साथ इस्‍लाम में ‘खतना’  के जरिए महिलाओं के ऊपर अत्‍याचार होता हुआ दिखाई देता है। महिला खतना यानी कि ‘फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन’ में योनि के क्लिटोरिस के एक हिस्से को रेजर या ब्लेड से काट दिया जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह खतना चार तरह का हो सकता है- क्लिटोरिस के पूरे हिस्से को काट देना, कुछ हिस्सा काटना, योनि की सिलाई या छेदना। इस दर्दनाक और अमानवीय प्रथा से कई बार यौन संक्रमण संबंधी बीमारियां हो जाती हैं, तमाम महिलाओं को ताउम्र मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। बोहरा मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली इंसिया दरीवाला के मुताबिक ‘क्लिटरिस’ को बोहरा समाज में ‘हराम की बोटी ‘ कहा जाता है।  बोहरा मुस्लिम मानते हैं कि इसकी मौजूदगी से लड़की की यौन इच्छा बढ़ती है, जबकि क़ुरान इसकी इजाजत नहीं देता।

सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई है खतने पर पाबंदी, फिर भी…
सर्वोच्च न्यायालय ने भी दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना को भारतीय दंड संहिता और बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून ( पॉक्सो एक्ट) के तहत अपराध बताया है। 15 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ परम्‍परा के नाम पर किए जाने वाले इस काम की कठोर निंदा की है, फिलहाल इस परंपरा पर 42 देशों ने रोक लगा दी है, जिनमें 27 अफ्रीकी देश हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर प्रतिबंध लगाने की बात अनेकों बार कही है,लेकिन बावजूद इसके छोटी बच्चियों के साथ की जाने वाली इस प्रक्रिया के मामले कम नहीं हो रहे हैं।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से जुड़ी महिलाएं जुटीं जागरण के काम में 
वास्‍तव में इन तमाम मुस्‍लिम महिलाओं के संकट और अस्‍मिता के प्रश्‍नों के समाधान को लेकर ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ से जुड़ी महिलाएं आज जागरण के काम में जुटी हैं। सबसे पहले ये मंच मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज पढ़ने की अनुमति दिलाने के लिए मुहिम चलाने जा रहा है।  इसके साथ ही मंच ने शादी की न्यूनतम उम्र तय करवाने के लिए भी राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने का फैसला किया है। इसके लिए मंच से जुड़े नेताओं ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लगभग 40 जिलों का दौरा कर मुस्लिम वर्ग के लोगों से मुलाकात की है और उन्‍हें अपनी बातों को मानने के लिए मना लिया है।

शादी की न्यूनतम उम्र तय करवाने के लिए मुहिम चलाने पर भी हो रहा काम 
गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, रामपुर, सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, शाहजहांपुर, संभल, बहराइच, कैराना, अलीगढ़, आगरा, कानपुर, लखनऊ, फैजाबाद, सहारनपुर, गोरखपुर, आजमगढ़, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, मऊ, देवरिया, देहरादून, हरिद्वार सहित विभिन्न जिलों के दौरे, मुस्लिम समाज के लोगों से मुलाकात खासकर मुस्लिम महिलाओं से मुलाकात के आधार पर मंच को यह अहसास हुआ कि भारत का मुस्लिम समाज जबरदस्ती थोपी गई कुरीतियों से छुटकारा पाना चाहता है और तीन तलाक से मुक्ति के कानून ने उन्हें एक रास्ता दिखा दिया है,  इसलिए मंच ने मुस्लिम महिलाओं को नमाज पढ़ने के लिए समान अधिकार दिलवाने और शादी की न्यूनतम उम्र तय करवाने के लिए मुहिम चलाने का फैसला किया है। इसके लिए एक मुहिम के तहत मंच ने मुफ्तियों, मौलानाओं, इमामों और छात्र-छात्राओं के साथ-साथ समाज के अन्य प्रभावशाली लोगों के साथ विचार मंथन की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

(लेखिका डॉ. निवेदिता शर्मा बाल कल्‍याण समिति की पूर्व सदस्‍य एवं समाज सेविका हैं)

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