- धर्म विशेष के नाम पर वोट बैंक की राजनीतिक लालसा देश की गरिमा के लिए घातक
लखनऊ। फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” समाज में दूरी बढ़ा रही है! फिल्म दो समुदायों के बीच की खाई गहरी करती नजर आ रही है! यह समाज के लिये अच्छी बात नहीं है! शांति के साथ रहने वाले कश्मीरी अब्दुल को इस फिल्म में विलेन के रूप में पेश किया गया है, जिससे हमारे यूपी के अब्दुल को गहरी ठेस लगी है! फिल्म देखकर नाराज तो एमपी, छत्तीसगढ़ और बिहार का अब्दुल भी है. नाराज तो चंगूलाल चमनपंथी भी हैं. गंगा-जमुनी तहजीब भारत की पहचान है, और सदियों से देश इसी विचारधारा को जीता आया है. गंगा-जमुनी तहजीब के तहत ही आतातायी लोहा सिंह अपना घोड़ा गरीबों-मजलूमों पर दौड़ा देता था, मार खाता था लेकिन सुधरता नहीं था. अगली फिल्म में फिर यही काम करता था, जबकि जुम्मन चाचा हर फिल्म में नमाज पढ़कर सबके भले की दुआ और समाज में शांति लाने की कोशिश करते थे. पंडीजी बेईमानी करते थे, भगवान को धोखा देते थे, लेकिन रहीम चाचा पांचों वक्त का नमाज पढ़ते थे और गरीबों की मदद करते थे. इसी तहजीब के तहत मनसुख बनिया सूदखोरी करता था, जबकि फजलू चा अल्लाह की इबादत करते थे. नास्तिक विजय भगवान को नहीं मानता था, लेकिन 786 नंबर वाला बिल्ला उसे गोली से बचा लेता था. यह थी गंगा-जमुनी संस्कृति जिसे अब्दुल के साथ चंगूलाल चमनपंथी ने बहुत मुश्किलों से बचा रखा था, लेकिन अब इस तहजीब को खत्म करने की कोशिश की जा रही है. अब अब्दुल को विलेन बनाया जा रहा है. कश्मीर के अब्दुल को ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे वह गुंडा या आतंकवादी हो. अब यह देखकर यूपी तो क्या जहां का भी अब्दुल होगा गुस्सा तो आयेगा ही. कोई भी धर्म मारकाट करना नहीं सिखाता है. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है. आतंकी कोई भी हो सकता है, लेकिन फिल्म के जरिये इस तथ्य को गलत साबित करने की कोशिश की जा रही है. इस पर कोई भी गुस्सा हो सकता है. गुस्सा तो मुझे भी आ रहा है कि वोट के लिये नेता सब पता नहीं क्या क्या करेंगे? गंगा-जमुनी संस्कृति को जमुनी-गंगा संस्कृति बनाकर पता नहीं देश का कितना नुकसान करेंगे ये लोग?
#तिरछी_कटारी
(साभार – अनिल सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)