वाराणसी। सनत्कुमारीय के अनुसार माला के निर्माण में मणियों को पिरोने में कपासनिर्मित धागा धर्म-काम-अर्थ तथा मोक्ष (चारो पदार्थ) देने वाला होता है। वह भी यदि ब्राह्मण श्रेष्ठ की कन्या द्वारा निर्मित हो तो अति उत्तम होता है। शुक्लवर्ण, रक्तवर्ण तथा कृष्णवर्ण का पट्टसूत्र भी क्रमशः शान्तिकर्म, वश्यकर्म तथा अभिचार कर्म में उपयोगी होता है। ब्राह्मण के लिये शुक्ल सूत्र की माला, क्षत्रिय के लिये रक्तसूत्र में पिरोई हुई माला, वैश्य के लिये पीतवर्ण के सूत्र में प्रोत माला तथा शूद्रहेतु कृष्णसूत्र में प्रोत माला शुभ होती है। सभी वर्गों के लिये रक्तवर्ण की माला अभीष्ट सिद्धिदायक होती है। त्रिगुण सूत्र को पुनः त्रिगुण कर शिल्पशास्त्र के अनुसार माला को गूँथना चाहिये। माला गूँथने वाले विद्वान् व्यक्ति को चाहिये कि वह मन्त्र के एक-एक मातृका वर्ण का तारस्वर से जप करता हुआ माला के मनके (गुरिया) को लेकर सूत्र में प्रोत कर बीच-बीच में गाँठ लगाता जाय। पूरी माला बन जाने पर ब्रह्मग्रन्थि लगाकर सुमेरु लगाकर पुनः ग्रन्थि लगाकर फिर माला को नमस्कार करना चाहिये।
द्वारा: आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी। प्राध्यापक: हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी। निदेशक: काशिका ज्योतिष अनुसंधान केंद्र। मो0- 9450209581/ 8840966024