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सीता जी के व्यक्तित्व और चरित्र पर आधारित ग्रन्ध है “श्री सीतायण”

‘राम अनादि सीता अनादि पुनि अबध अनादी
तुम्हारी पुरी अनादि सकल कहे बेद के बादी
दोऊ राय अनादि अवध मिथिला की गादी
चतुर्वेद षट्शास्त्र पुराणादिक प्रतिपादी
तुम राजा सब जानहु तुम्हरे गृह को बात सब
अपरनिकों तब लषि परे तुम्हारी कृपा कटाक्ष जब ‘

ये पंक्तियाँ ‘श्री सीतायण’ के मधुर माल काण्ड से उदधृत है। जिसमें महाराज जनक की वाटिका में बैठकर महर्षि नारद ने उन्हें भक्ति और ज्ञान का उपदेश दिया था जिसमें श्री सीता और श्री राम के ईश्वरत्व का वर्णन है।
‘श्री सीतायण’ नेपाल के रसिक काव्य ग्रन्थ ‘सीतायण’ का हिंदी अनुवाद है। ‘सीतायण’ शुद्ध अवधी-मैथिली में रचित है और इसके रचयिता स्वामी श्री रामप्रियाशरण दास हैं। पुस्तक में छह काण्डों-बालकाण्ड, मधुरमाल काण्ड, जयमाल काण्ड, रसमाल काण्ड, सुखमाल काण्ड, रसाल काण्ड में कथा का संयोजन है। डॉ एम.गोविंदराजन के संपादकत्व में अनुवादक डॉ कृष्णबिहारी पांडेय, संयोजन डॉ शिव गोपाल मिश्र के सहयोग से यह पुस्तक हिंदी साहित्य को उपलब्ध हुई। डॉ.पाण्डेय के मतानुसार – ‘इस ग्रन्थ में स्वामी जी ने श्री सीता जी के प्राकट्य, शैशव एवं बालविहार से लेकर विवाहोपरांत, सखियों, सहचरियों के संग आयोध्या जाने और आयोध्या राजमहल में प्रभु श्री राम के साथ सुखपूर्वक विहार करने और मायके जनकपुर आकर श्री राम के साथ विहार का लालित्यपूर्ण छंदबद्ध वर्णन किया है। इस ग्रंथ का एक-एक छंद, छंद का एक एक शब्द किसी न किसी जीवनमूल्य का सन्देश देता है। गीता के 16वें अध्याय के प्रथम तीन श्लोकों में जो छब्बीस सदगुण जीवनमूल्य के रूप में वर्णित हैं वे सब श्री सीतायण ग्रन्थ के छंदों में गुंफित हैं। सम्पूर्ण ग्रंथ श्रद्धा, भक्ति, सात्विकता, निर्भयता, दान यज्ञ, तप, डे, ऋजुता, अहिंसा, शांति, दया, तेजस्विता, त्याग, सुचिता, मृदुता, सौंदर्य और लज्जा जैसे जीवनमूल्य व्याप्त हैं पर प्रधानता उनकी है जो सरस हैं, मधुर हैं और सुख-शांति प्रदान करने वाले हैं।’
निश्चित ही ‘श्री सीतायण’ ग्रन्थ हिंदी जगत की अनुपम निधि साबित होगा और सीता जी के व्यक्तित्व और चरित्र पर आधारित ग्रन्धों में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करेगा। सीता जी पर आधारित अन्य ग्रन्थ हैं – राजदेव सिंह का ‘सीतायण’ ; मंगला प्रसाद का महाकाव्य ‘सीतायन’; अवधेश नारायण मिश्र जी का खंडकाव्य ‘सीतायन’; डॉ उर्मिला किशोर का महाकाव्य ‘सीतायन’; डॉ मिथिलेशकुमारी मिश्र का खंडकाव्य ‘अभिशाप’; डॉ मृदुला सिन्हा का उपन्यास ‘सीता पुनि बोलि ‘; डॉ स्नेह ठाकुर का उपन्यास ‘श्रीराम प्रिया सीता’ आदि उल्लेखनीय हैं।

साभार – अरुण पांडे जी के फेसबुक वॉल से

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