प्रवीण मणि त्रिपाठी “शान्तेय” की कलम से “शिवमयी सुरात्रि यह”

अनादि हैं अनन्त जो

असंख्य हैं अघोर जो ।
हरें वे घोर ताप-पाप
पुण्य का प्रसाद दें।।

अपार शक्तिधर महेश
शेषधर धरा-धरेश।
पुत्र हैं गणेश जिनके
वे हरें अशेष क्लेश।।

शिवमयी सुरात्रि यह
बनी है शिवरात्रि जो।
हरें समस्त संकटों को
लोक को सुशान्ति दें।।

परम प्रकाश रूप हैं
महाविभूति देव हैं।
अनंगहर शुभांग भस्म-
धारी महादेव हैं।।

भूमि,जल,अनल,अनिल,
गगन उन्हीं के रूप हैं।
शशांक-सूर्य नेत्र हैं
दयालु शिव ही भूप हैं।।

प्रवीण मणि त्रिपाठी “शान्तेय”

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