संत रविदास जी सामाजिक समरसता के प्रतीक – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। गुरू रविदास जी की जयंती के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि गुरू रविदास जी ने समाज को अमृतबनी के रूप में एक पवित्र ग्रंथ दिया।

गुरु रविदास जी 14वीं सदी के संत तथा उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन से संबंधित प्रमुख सुधारकों में से एक थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन जाति आधार पर हो रहे भेदभाव के उन्मूलन के लिये समर्पित कर दिया। उनके भक्ति गीतों का भक्ति आंदोलन पर त्वरित प्रभाव पड़ा। उनकी लगभग 41 कविताओं को सिखों के धार्मिक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल किया गया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गुरू रविदास जी और भक्ति आंदोलन के अन्य संतों ने धर्म को एक मात्र औपचारिक पूजा के रूप में नहीं बल्कि मानवता, प्रकृति और पर्यावरण के बीच प्रेम पर आधारित एक दिव्य संबंध के रूप में स्वीकार किया। गुरू रविदास जी की ईश्वर के प्रति अटूट आस्था थी इसलिये उन्होंने निष्पक्ष धार्मिक कविताओं का सृजन किया जो आज भी सभी के लिये प्रेरणा का स्रोत है।

स्वामी जी ने कहा कि गुरू रविदास जी ने सामाजिक समरसता को बनाये रखने हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपनी वाणी और लेखनी के माध्यम से आध्यात्मिक, बौद्धिक व सामाजिक क्रांति का कुशल नेतृत्व किया। उनकी वाणी में निर्गुण तत्व का मौलिक व प्रभावशाली समन्वय मिलता है।

संत रविदास ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों पर पहार किया। उनका मानना था कि सभी में समान प्राण -तत्व विद्यमान है। भारतीय पूज्य संतों ने हमेशा ही मानवता और अहिंसा के लिये अपना जीवन समर्पित किया है। संत श्री रविदास जी ने युग प्रवर्तक स्वामी रामानंद जी को अपना गुरू बना कर उनके दिव्य सत्संग से ज्ञान प्राप्त कर समाज को एक नई दिशा प्रदान की।

संत रविदास जी ने संदेश दिया कि प्रभु किसी भी प्रकार की सीमाओं में नहीं बंधे हैं वे तो घट – घट व्यापी हैं। उनका मत है कि प्रभु ही सबके स्वामी हैं। उन्होंने अपनी वाणी से आध्यात्मिक व बौद्धिक क्रांति के साथ- साथ सामाजिक क्रांति का भी सूत्रपात किया। वे एक क्रांतिकारी व मौलिक विचारक थे। उन्होंने परमात्मा से संपर्क जोड़ने के लिये नामस्मरण और आत्मसमर्पण का मार्ग दिखाया।

संत रविदास ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भारत भ्रमण किया तथा दीन हीन व हासिये पर खड़े लोगों के उत्थान के लिये एक क्रान्ति का सूत्रपात किया। संत रविदास जी ने अपने संदेशों के माध्यम से साम्प्रदायिकता प्रहार किया। उनका मत है कि सारा मानव वंश एक ही प्राण तत्व से जीवंत है।

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