समलैंगिक विवाह को मान्यता देना भारत की सभ्यता, संस्कृति के खिलाफ- आचार्य लोकेश

  • समलैंगिक विवाह के विरोध में दक्षिण और उत्तर भारत के संत आए एक साथ

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह पर चल रही सुनवाई के बीच आज एक विशेष घटनाक्रम के तहत दक्षिण से लेकर उत्तर भारत तक के संत एकजुट होकर एक मंच पर आए और समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने के खिलाफ प्रेस को संबोधित किया।

श्रीराम हनुमान वाटिका, रामलीला मैदान, नई दिल्ली में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए हुए विश्व विख्यात प्रतिष्ठित जैन आचार्य लोकेशजी ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना हमारी प्राचीन मूल्य आधारित संस्कृति पर कुठाराघात होगा। सैकड़ों हजारों वर्षों से चली आ रही भारतीय विवाह परंपरा पर प्रहार होगा और समाज की नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन होगा। उन्होने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से अपील करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी स्तर पर मान्यता देना उचित नहीं है, इस पर अविलंब रोक लगाना समाज व संस्कृति के हित में होगा।

अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य लोकेशजी ने बताया कि उन्होंने इस विषय पर माननीय मुख्य न्यायाधीश को पत्र भी लिखा है उन्होंने कहा कि भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार देता है । जैन धर्म भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में पूर्ण विश्वास रखता है एवं पालन करता है किंतु व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ साथ ही प्रत्येक नागरिक का अपने समाज और देश के सामाजिक कर्तव्य एवं सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति भी दायित्व है। इन सामाजिक कर्तव्यों एवं सांस्कृतिक मूल्यों का पालन अबाधित रूप से भारतवासी सनातन समय से करते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं विशेषकर जैन संस्कृति में विवाह, वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का आधार है।

इस अवसर पर पूज्य जैनाचार्य लोकेशजी के साथ पूज्य रामानंद स्वामिंगल, पूज्य आत्मानंद स्वामिंगल, पूज्य बौद्ध भंते राहुल, श्री कपिल खन्ना, प्रांत अध्यक्ष विश्व हिंदू परिषद, अशोक गुप्ता, प्रांत सह मंत्री विश्व हिंदू परिषद ने भी संबोधित किया।

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