समीक्षक- केशव शुक्ल, शिक्षक एवं आकाशवाणी प्रसारक
श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी की एक विशिष्ट आत्मकथात्मक कृति है-” सांप, सीढ़ी, ज़िन्दगी।” इस पुस्तक के आवरण पृष्ठ को देखते ह़ी पुस्तक को पूरी तरह पढ लेने की उत्सुकता का जागतृ हो जाना अतिशयोक्ति नह़ीं हो सकता ।
एक संघर्षरत जीवन की कथा को बडे ही संयत स्वरुप में सहेजते हुए पाठकों के सम्मुख रखने का एक सहज प्रयास है जो उसी सहजत के साथ सुधी पाठक को सहृदय भी बनने की दक्षता भी रखता है। ज़िन्दगी की हक़ीकत को बयान करते हुए यह पुस्तक अपनी समग्रता में अपने नाम को सार्थक बनने में कोई भी कोर-कसर नह़ीं रख छोड़ती।
इस पुस्तक की सार्थकता के पीछे आदरणीय श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी जी का विराट व्यक्तित्व भी है जिसे विकसित
करने में आपके पिता श्री , गुरु और उद् भट विद्वान आचार्य प्रतापादित्य के आशीष के साथ ह़ी डॉ० हरिवंश राय बच्चन, शिवानी ,पं०विद्या निवास मिश्र, डॉ०परमानन्द श्रीवास्तव जैसे मूर्धन्य विद्वानों का प्रोत्साहन भी सम्मिलित है।ऐसे व्यक्तित्व के विषय में बिना अध्ययन कुछ भी कह पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव सा प्रतीत होता है।
समीक्षा लिखने बैठा तो जिज्ञासु मन बार-बार पुस्तक को पढ़ने को आकुल करने लगा । आपकी लेखनी की विलक्षणता देश-काल, पात्र और
परिस्थितियों के सम्यक विवेचन में अपनी पराकाष्ठा का भान कराती हुई सी प्रतीत होती है।
आप द्वारा किए गए वर्णन अन्यत्र प्रायः दुर्लभ हैं। यद्यपि इसके पूर्व स्टोऱी मिरर द्वारा प्रकाशित आपका लघुकथा संग्रह’ कब आएगी नई सुबह ‘ भी एकदम नये कलेवर में लघुकथाओं के सजृन का दस्तावेज़ ही रहा है।एक से बढकर एक लघुकथाएं प्रायः आत्मकथा शैली का ही बोध कराती आपके अनूठे प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हुई सी प्रतीत होती हैं।
अपनी आत्मकथा की पुस्तक ‘सांप, सीढ़ी ज़िन्दगी’ जो नमन प्रकाशन द्वारा, हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश के सहयोग से प्रकाशित है , निश्चित रूप से हिन्दी पाठकों के लिए आत्मकथात्मक शैली का अद्वितीय उदाहरण है। अपने संघर्षरत जीवन के सच को आपने यथासम्भव उकेरने का जो
अदम्य प्रयास किया है वह वर्णनातीत है। श्री त्रिपाठी स्वयं महसूस करते हैं कि अक्षर और आकृतियों की दुनियां में आकर जीवन के नैराश्य से भी उबरा जा सकता है क्योंकि जीवन में सब कुछ स्याह नह़ीं होता । वे मानते हैं कि आत्मकथाएं एक सुधी पाठक को उसके टूटे बिखरे समय में उसकी आन्तरिक शक्तियों समेट कर नये सिरे से सजृन कार्य में भी संलग्न होने की प्रेरणा देती हैं।
“सांप सीढ़ी ज़िन्दगी ” में जहां आपने ज़िन्दगी की तुलना सांप – सीढ़ी खेल से किया है वहीं इस खेल की ऐतिहासिकता का वर्णन सन्दर्भ सहित करने में भी आपने कोई कसर नह़ीं रख छोड़ा है। इक्कीस अध्यायों की अपनी इस पुस्तक में आपने पाठक के लिए वह विशेष स्थिति पैदा कर दिया है जहां उसे यह मान लेने के सिवा और कोई रास्ता नह़ीं दिखता कि वास्तव में ज़िन्दगी सांप, सीढ़ी के खेल के सिवाय और कुछ भी नह़ीं है।
सभी साहित्य सुधी पाठकों से निवेदन करूंगा कि वह इसे अवश्य ही पढ़ें।यह पुस्तक उनकी विभिन्न जिज्ञासाओं का शमन करने में भी सक्षम है। यह आदरणीय श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी जी का हम सभी पर एक बड़ा उपकार भी है कि उन्होंने नाथ सम्प्रदाय, गोरखपुर शहर , आनन्द मार्ग के गुरु जैसे विभिन्न अनिवार्य प्रकरणों का ससन्दर्भ सन्निवेश कर हमें भटकाव से उबारने का भी सफल प्रयास किया है।
………एक सफल आत्मकथा प्रस्तुत करने के लिए आदरणीय त्रिपाठी जी , आपका हार्दिक आभार!
■ केशव शुक्ल