दुर्गा नवार्ण मंत्र के जप का फल एवं विधि।

वाराणसी। मन्त्रमहोदधि के अनुसार माँ दुर्गे का ध्यान करके नवार्ण मन्त्र का चार लाख जप करके उसके दशांश से पायसान्न से होम करना चाहिये। इस प्रकार से मन्त्र सिद्ध होने पर साधक सभी सौभाग्यों को प्राप्त करता है। इसके साथ ही मार्कण्डेय पुराणोक्त चण्डीस्तव (दुर्गासप्तशती) भी पढ़ना चाहिये। उसका पाठ यदि मूल मन्त्र (नवार्ण) से सम्पुटित कर किया जाय तो वाञ्छित फल की प्राप्ति होती है। आश्विन मास या चैत्र मास या गुप्त नवरात्रि के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से आरम्भ कर अष्टमी-पर्यन्त एक लाख जप करे तथा उसका दशांश होम करे। प्रतिदिन देवी की पूजा तथा सप्तशती का पाठ करता रहे। फिर ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणादि से सन्तुष्ट करे तो उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

डामरतन्त्र के अनुसार नवार्ण मंत्र के जप का फल विदित है। ‘ऐं’ बीज आदि चन्द्रमा के समन दीप्तिमान है। ‘ह्रीं’ बीज सूर्य के समान अद्वितीय तेज वाला है। ‘क्लीं’ बीज की मूर्ति अग्नि के समान रूप वाली होती है। इन तीनों बीजों का चिन्तन अनन्त सुख देता है। ‘ चां’ बीज जाम्बूनद के समान कान्ति वाला है। ‘ मुं’ बीज रक्ततर वर्ण का जानना चाहिये । ‘डां’ बीज छः प्रकार की उग्र पीड़ा को दूर करने वाला है तथा सुनील एवं कृष्णतर वर्ण का होता है; साथ ही शत्रुनाशक भी है। ‘वि’ वर्ण पाण्डुवर्ण आठवाँ अक्षर है, जो कि आदि सिद्ध है।’ च्चे’ धूम्रवर्ण तथा विशाल होकर नवाँ वर्ण है। इस प्रकार इन बीजों से युक्त यह नवार्ण मन्त्र का जप जापक को सम्पूर्ण सिद्धियाँ देता है। यह नौ बीजों से विशुद्ध मन्त्र सम्पूर्ण लोक को पवित्र करने वाला है। जो साधक इसको जपता है, उसका फल इस प्रकार है।इसके जापक के वश में स्त्रियाँ हो जाती हैं। राजा लोग उसके अनुचरों की भाँति हो जाते हैं। उसे हाथी, सर्प, दावाग्नि तथा चोर, डाकुओं एवं आतङ्कवादियों का भय नहीं होता है; न ही राजा का भय होता है। चण्डिका की आज्ञा से उसे सभी सम्पत्तियाँ मिल जाती हैं। उसके दारुण रोग नष्ट हो जाते हैं; इसमें कोई संशय नहीं है। जो इस नवार्ण मन्त्र का एक सहस्त्र जप नाभिमात्र जल में खड़े होकर करता है, उसे निश्चित ही सम्यक् फल की प्राप्ति हो जाती है। नवार्ण मन्त्र का जप अयुत (दस सहस्र) करने से राजबन्धन सङ्कटादि से मुक्ति मिल जाती है। जो इस मन्त्र को जपता है, वह शीघ्र सङ्कट से मुक्त हो जाता है। इस नवाक्षर (नवार्ण मन्त्र) में महालक्ष्मी स्थित हैं; अतः यह सबके लिये सिद्ध मन्त्र है, जो सभी दिशाओं को प्रकाशित करता है।

आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी।
प्राध्यापक: हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी। निदेशक: काशिका ज्योतिष अनुसंधान केंद्र। मो0: 9450209581/ 8840966024

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