मिर्जापुर। लालडिग्गी स्थित कुमार उत्सव भवन में चल रहे श्री मद् भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान के बाल रुपी चमत्कारिक कृतियों से लेकर उनकी देवी रुक्मिणी से शादी तक की कथा का सुंदर वर्णन कथा व्यास डॉ रामलाल त्रिपाठी जी के द्वारा किया गया। कथा व्यास ने कहा कि पूतना भगवान के बावन अवतार के समय ही उनके स्वरुप पर मोहित हो गई थी, तब वो राजा बलि की कन्या रत्नमाला थी। उसी समय उसके मन में भगवान (वामन भगवान ) को स्तनपान कराने का भाव आ गया था। कंस का अर्थ कासतीति था जिसका अर्थ कसाई होता है। उसने अपने समूह के अनेक राक्षसों पूतना, षटकासुर, अघासुर, बकासुर को भगवान का वध करने के लिए भेजा लेकिन भगवान ने उन सभी का वैसे ही वध किया जैसे कोई बालक गुब्बारे फोड़ता है। अंत में कंस ने अक्रूर जैसे महात्मा को भेजा जहां भगवान ने कंस के यज्ञ के आमंत्रण को स्वीकार किया और अक्रूर जी के साथ मथुरा जाने के लिए निकल पड़े। डा त्रिपाठी ने आगे कहा कि रास्ते में जो माली मिला वो त्रेता युग का माली था और जो दर्जी मिला वो भी त्रेता युग में भगवान राम के वस्त्र सिलता था। मथुरा गमन के दौरान ही रास्ते में कुब्जा से भी भेंट होता है जो पूर्वजन्म की सुपर्णखा थी। अंत में भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध करके उग्रसेन को राजपाट सौंपा और अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त कराया। भगवान के द्वारा मारे गए सभी राक्षतों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
डा त्रिपाठी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने चौसठ दिनों में गुरु संदीपनी से समस्त विद्या ग्रहण किया और गुरु दक्षिणा के रूप में उनके पुत्रों को जीवित किया।
डा त्रिपाठी ने कहा कि वांग्मय काल में भगवान ने प्रेम-पत्र के द्वारा देवी रुक्मिणी से प्रेम का इजहार किया और उनका हरण करने के पश्चात् बड़े भाई बलराम की आज्ञा से विवाह किया। कथा व्यास डॉ रामलाल त्रिपाठी जी ने ये भी कहा कि संभवतः भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी के बीच का प्रेम पत्र ऐतिहासिक दृष्टि से प्रथम प्रेम-पत्र था। कथा के अंत में भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के शादी का प्रर्दशन भी नन्हे बच्चों के द्वारा किया गया।
आज कार्यक्रम के दौरान डॉ भवभूति मिश्र, अमरेश मिश्रा, गोवर्धन त्रिपाठी, शिव कुमार मिश्र, तुंगनाथ द्विवेदी, अवधेश तिवारी, राजकुमार जायसवाल सहित अपना शुक्ल परिवार के समस्त सदस्य उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन अपना शुक्ल परिवार के श्रीयुत श्रीमोहन शुक्ल ने किया। कार्यक्रम का आरंभ इन्द्र मोहन, बृजमोहन, अशोक, शिवकुमार, लवकुश, महेश, वैभव, गोपाल, एवं अमरजीत शुक्ल द्वारा व्यास पूजन से हुआ। अंत में श्री शिवकुमार शुक्ल ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया!