पद्मश्री कैलाश खेर ने परमार्थ निकेतन से ली विदा

  • चलते-चलते गंगा आरती प्रशिक्षण ले रहे पंडितों व पुरोहितों को नदियों की स्वच्छता का दिया संदेेश
  • परमार्थ निकेतन में पांच दिवसीय गंगा जी के प्रति जागरूकता और आरती कार्यशाला का समापन
  • गंगा जी के तट पर स्थित भारत के पांच राज्यों से 20 घाटों के पंडितों और पुरोहितों ने लिया प्रशिक्षण
  • परमार्थ निकेतन, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे और अर्थ गंगा के संयुक्त तत्वाधान गंगा जी के प्रति जागरूकता और आरती कार्यशाला का आयोजन
  • बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक भारत रत्न महामना स्वर्गीय पंडित मदनमोहन मालवीय जी की 163 वी जयंती पर भावभीनी श्रद्धाजंलि

ऋषिकेश। प्रसिद्ध आध्यात्मिक गायक पद्मश्री कैलाश खेर जी ने परमार्थ निकेतन से विदा लेते हुये गंगा आरती का प्रशिक्षण ले रहे पंडितों और पुरोहितों से मिलकर उन्हें नदियों को स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त रखने का संदेश दिया।

परमार्थ निकेतन, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे और अर्थ गंगा के संयुक्त तत्वाधान में गंगा जी के प्रति जागरूकता फैलाने, उनकी महिमा को जन-जन तक पहुंचाने और नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के उद्देश्य से परमार्थ निकेतन में पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला का उद्घाटन जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में सभी पन्डितों व पुरोहितों ने किया। आज परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में गंगा आरती का प्रशिक्षण ले रहे पण्डितों ने वाटर ब्लेसिंग सेरेमनी कर जल संरक्षण का संकल्प लिया। गंगा जी के तट पर स्थित पांच राज्यों के 20 घाटों से आए पंडितों ने इस कार्यक्रम में गंगा जी को प्रदूषण मुक्त रखने के हेतु जागरूकता फैलाने के साथ-साथ जल संरक्षण के महत्व के विषय में जानकारी प्राप्त की।

दीप प्रज्वलन के साथ कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ तथा वाटर ब्लेसिंग सेरेमनी कर जल की पवित्रता को बनाये रखने व जल संरक्षण का सभी को संकल्प कराया। यह प्रशिक्षण न केवल गंगा के तटों पर स्थित घाटों के पंडितों और श्रद्धालुओं को जोड़ने व प्रशिक्षित करने के लिये है बल्कि नदियों के लिये एकजुट होने का भी प्रतीक है। इस कार्यशाला के माध्यम से गंगा जी की महिमा और उनके प्रति श्रद्धा को सभी तक पहुंचाने के साथ नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने का संदेश प्रसारित किया जा रहा है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आरती, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो न केवल धार्मिक क्रियाओं का हिस्सा है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने का एक माध्यम भी है। आरती अर्थात आत्मिक प्रसन्नता और आंतरिक शांति। आरती का शाब्दिक अर्थ ’’आ’’ अर्थात अपने आराध्य के प्रति आस्था और ’’रति’’ अर्थात् आनंद। आरती हमें अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा और प्रेम प्रकट करने का एक माध्यम है, जिससे हमें आंतरिक शांति, सुख, और संतोष की प्राप्ति होती है।

गंगा जी की आरती, विशेष रूप से, एक आध्यात्मिक कड़ी है, जिसके माध्यम से न केवल गंगा जी के पवित्र जल के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, बल्कि यह जल, पर्यावरण, और समग्र जीवन के प्रति जागरूकता भी बढ़ाती है। जब हम गंगाजी की आरती करते हैं, तो यह हमें प्रकृति के महत्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता की याद दिलाती है।

आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक भावना है, जो पूरे समाज को एक साथ जोड़ने और जागरूक करने का कार्य करती है। वर्तमान समय में जल संकट और पर्यावरणीय संकट हमारी दुनिया के सबसे बड़े मुद्दों में से एक हैं। जल की बढ़ती मांग और बढ़ते प्रदूषण ने हमारे जल स्रोतों को खतरे में डाल दिया है। गंगा जैसी पवित्र नदियों का जल, जो भारत के करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है, गंभीर संकट का सामना कर रहा है।

जब हम गंगा जी की आरती करते हैं, तो हम जल के संरक्षण का संकल्प लेते हैं और उसे प्रदूषण से मुक्त करने की दिशा में कार्य करने का प्रण करते हैं। गंगा जी की आरती से यह संदेश मिलता है कि जल को संरक्षित करना केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हमारे सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग है।

स्वामी जी ने कहा कि आप सभी गंगा जी के पैरोकार व पहरेदार है इसलिये आप के नेतृत्व में गंगा जी की आरती पर्यावरणीय जागरूकता का एक सशक्त माध्यम बन सकती है। यदि हम आरती के साथ-साथ जल स्रोतों की रक्षा, जल पुनर्चक्रण, और जल प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को अपनाएं, तो हम न केवल गंगा बल्कि सभी जल स्रोतों को प्रदूषण से मुक्त कर सकते हैं।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि पांच दिवसीय गंगा जी के प्रति जागरूकता और आरती कार्यशाला का आयोजन एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल गंगा की महिमा को बढ़ावा देता है, बल्कि जल संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा और प्लास्टिक मुक्त भारत की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में प्रभावित करने का एक उत्कृष्ट माध्यम है। यह हमें अपने पर्यावरण और जल स्रोतों के प्रति संवेदनशील बनाता है और हमें अपने कर्तव्यों का एहसास कराता है।

जब हम गंगा जी की आरती करते हैं, तो हम न केवल अपने आंतरिक जीवन को शुद्ध करते हैं, बल्कि हम अपने समाज, देश और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी लेते हैं। इस कार्यशाला के माध्यम से हमें यह समझने की आवश्यकता है कि गंगा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, जिसे सुरक्षित और स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी है।

पद्मश्री कैलाश खेर जी ने कहा कि महाकुम्भ प्रयागराज में संतों का समागम होगा, संतों का संगम होगा, संतों का अखाड़ा होगा, वहां पर आचार्य आयेंगे, नाथ आयेंगे, सिद्ध आयेंगे। सिद्धि के बिना प्रसिद्धि नहीं होती। सिद्धि के बिना प्रसिद्धि और साधना के बिना साधन आये तो उसका संचालन ठीक से नहीं हो सकता। कुम्भ वह दिव्य अवसर है जो सिद्धि और साधना दोनों का संगम होता है इसलिये आओं कुम्भ चलें।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

22,046FansLike
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles