ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मकर संक्रांति की शुभकामनायें देते हुये कहा कि मकर संक्रांति का पर्व भगवान सूर्य की आराधना व आभार प्रकट करने हेतु समर्पित है। आज का दिन प्रकृति में व्याप्त प्रचुर संसाधनों और फसल की अच्छी उपज के लिये प्रकृति को धन्यवाद और आभार प्रकट करने का अवसर प्रदान करता हैं। यह त्योहार सूर्य के मकर में प्रवेश का प्रतीक है। आज के दिन पवित्र नदियों में स्नान और का अत्यंत महत्व है।
मकर संक्रांति के दिन प्रसाद के रूप में खिचड़ी खायी जाती है खिचड़ी स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होने के साथ सुपाच्य भी है। आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाओं से जोड़ों के दर्द व अन्य बीमारियाँ हो सकती है, इसलिए प्रसाद के रूप में खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खायी जाती है। तिल और गुड़ शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है। इनके सेवन से शरीर के अंदर गर्मी बढ़ती है। तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं इसलिये इसे ठंड के दिनों में खाने के अनेक लाभ है।
मकर संक्रान्ति से धीरे-धीरे गर्मियों की शुरुआत होने लगती है। यह तिथि सूर्य के उत्तरायण होने का भी प्रतीक है। यह दिन शीत ऋतु की समाप्ति का भी प्रतीक है और पारंपरिक रूप से उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का स्वागत करने हेतु मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। । मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं इसलिये आज के दिन गंगा स्नान का अत्यधिक महत्व है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पर्यावरण संवर्द्धन के बिना संतुलित आर्थिक विकास सम्भव नहीं हो सकता। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर ही मानव जीवन का अस्तित्व निर्भर करता है। पर्यावरण प्रदूषण और प्लास्टिक से मानव जीवन और प्रकृति पर अनेक दुष्प्रभाव हो रहे है साथ ही इससे आर्थिक असमानता और अस्वस्थ्ता की खाई और चौड़ी व गहरी होती जा है। वास्तव में पर्यावरण और मानव अस्तित्व एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन स्वस्थ व स्वच्छ पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना करना बेमानी है इसलिये जीवन में संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान व प्रकृति का सामंजस्य अत्यंत आवश्यक है।
वर्तमान समय में प्रकृति व संस्कृति के मानवीय संबंधों, सहचर्य व सोच के मध्य दूरी बढ़ती जा रही है, जिसके कारण आज पूरे विश्व को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति व संस्कृति के संयोजन के बिना जो विकास हो रहा है वह पलायन, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिग और अब तो भू-धंसाव जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा हैं इसलिये प्रकृति अनुकूल व्यवहार का पालन करना ही संस्कृति है।
आईये संकल्प ले कि प्रकृति के संरक्षण के साथ ही संस्कृति के विकास की जो समृद्ध और समुन्नत विरासत है उसका संरक्षण और संर्वद्धन करें। प्रकृति व संस्कृति के मध्य बढ़ते असंतुलन को दूर करने तथा सामंजस्य को स्थापित करने हेतु अपने टाइम, टैलेंट, टेक्नॉलाजी और टेनासिटी के साथ हम सभी आगे आये यही संदेश हमारे पर्व और त्यौहार हमें देते हैं।