हरिद्वार। महाकुम्भ 2021 के अंतर्गत श्री हरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार के सारस्वत परिसर में स्थित “मृत्युंजयमंडपम्” में पूज्य “आचार्यश्री” जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज के पावन सान्निध्य में विश्व वन्दनीय संत पूज्य श्री मोरारी बापू जी के श्रीमुख से श्रीराम कथा का ‘पंचम दिवस’ सम्पन्न हुआ।
श्री हरिहर आश्रम, हरिद्वार में चल रही श्रीराम कथा के ‘पंचम दिवस’ में पूज्य मुरारी बापू जी ने कथा का आरम्भ साधकों की जिज्ञासा समाधान से किया!! तदनंतर उन्होंने साधक जीवन में गुरु-तत्व की उपादेयता प्रतिपादित की। पूज्य मुरारी बापू जी के अनुसार परमात्मा स्वयं ही भक्त के जीवन में गुरु बनकर आता है, इसलिए गुरु ही परमात्मा है और गुरु का द्वार ही हरिद्वार है। पूज्य बापू के अनुसार श्रीमद्भागवत, श्रीरामचरित मानस आदि सद्ग्रन्थ जो परमात्मा से हमारा परिचय करवाते हैं, उन्हें भी गुरु-तुल्य ही मानना चाहिए। पूज्य बापू के अनुसार गुरु के द्वार में पांच प्रकार के नियमों का निर्वहन किया जाना चाहिए। गुरु आज्ञा पालन, गुरु संग पालन, गुरु द्वारा प्रतिपादित यज्ञ आदि शुभ कर्मों में निष्ठा, गुरु की सर्वज्ञता पर दृढ़ विश्वास और स्वप्न में भी गुरु की अवज्ञा न करना और उनका अनुचर बनकर रहना !!
हरिद्वार में पंच-द्वारों की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं कि भगवान की प्राप्ति के अनेक मार्गो में मुख भी एक मार्ग है, जिसके ‘रा’ और ‘म’ नाम के दो कपाट हैं। जब यह कपाट खुलता है तो परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। अर्थात्, राम ही सृष्टि के मूल प्रतिमान हैं,और भगवान शिव व माता पार्वती इन राम नाम रूपी द्वार अथवा कपाट के उद्घोषक अथवा व्याख्याकार हैं, क्योंकि इन्हीं के परस्पर संवाद के कारण इस संसार को ‘रामकथा’ रूपी अमृत-तत्व की प्राप्ति हुई।
इसके बाद भगवान श्रीराम के जन्म का वर्णन करते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं कि भगवान श्रीराम में और भगवान श्रीकृष्ण में तत्त्वतः कोई भेद नहीं है। भगवान के दिव्य प्राकट्य के समय वैकुण्ठ स्वयं गोकुल बनकर प्रकट हुआ। बापू कहते हैं कि आनन्द तत्व ही नन्द, मुक्तिगेही यशोदा, दया देवकी और वेद ही वसुदेव हैं और इनके परस्पर समागम की फ़लश्रुति अर्थात् वेद के सार तत्व ही भगवान श्रीराम और कृष्ण हैं। भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के साथ ही पंचम दिवस की कथा सम्पन्न हुई।
आज के कथा श्रवण हेतु पूजनीया महामण्डलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि जी, महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी अपूर्वानन्द गिरि जी महाराज, संस्था के न्यासीगण सहित बड़ी संख्या में सन्त-साधक एवं श्रद्धालु गण उपस्थित रहे।