वाराणसी। एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप होती हैl वह ब्रह्म हत्या को नाश करती हैl अग्नि का स्तंभन करती हैl प्रवाह से फैलती हुई अग्नि ज्वालाओं को वह रुद्राक्ष रोककर शांत कर देता है।
दो मुख वाली रुद्राक्ष को हरगौरी कहा जाता है ।वह गो वध आदि पापों का नाश करती है ।तीन मुख वाली रुद्राक्ष अग्निजन्मा कही जाती है ।वह पापों के समूह का नाश करती है। चार मुख वाली रुद्राक्ष स्वयं ब्रह्मा है ।वह मनुष्य की ब्रहमहत्या को दूर करती है ।पांच मुख वाली रुद्राक्ष कालाग्नि कही जाती है। वह अगम्य यानी जिस स्त्री के साथ मैथुन नहीं करना चाहिए के साथ गमन और अभक्ष्य भक्षण के पाप को नाश करती है । छः मुख वाले रुद्राक्ष की गुह संज्ञा है ।वह भ्रूण हत्या आदि का नाश करती है। सात मुख वाले रुद्राक्ष को अनंतसंज्ञा कहते हैं और वह सुवर्ण चोरी या किसी प्रकार के चोरी आदि पाप को नाश करती है । आठ मुख वाले रुद्राक्ष की विनायक संज्ञा है ।वह सब मिथ्या भाषण रूपी पापों का नाश करती है ।नौ मुख वाले को भैरव रुद्राक्ष कहा जाता है ।वह शिवसायुज्यता को करने वाली होती है। दशमुखी रुद्राक्ष की विष्णु संज्ञा है ।वह भूत प्रेत के भय को हटाती है ।एकादश मुख वाले रुद्राक्ष को रूद्र कहते हैं ।वह अनेक प्रकार के यज्ञों का फल देने वाली होती है। द्वादश मुखी रुद्राक्ष को आदित्य के नाम से जाना जाता है। वह सब प्रकार के रोगों को हटाने वाली होती है । तेरह मुखी रुद्राक्ष की काम संज्ञा है ।वह सब इच्छाओं के फलों को देने वाली होती है ।चौदह मुख वाले रुद्राक्ष का श्रीकंठ नाम है ।वह वंश के उद्धार को करने वाली होती है ।
नोट-जो मनुष्य पृथ्वी पर बिना मंत्र के रुद्राक्ष को धारण करते हैं जब तक चौदह इंद्र हैं तब तक घोर नरक में जाते हैं ।रुद्राक्ष को धारण करने की विधि यह है कि पंचामृत और पंचगव्य का प्रयोग करें । रुद्राक्ष की प्रतिष्ठा पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय या त्रयंबक मंत्र से करें। आचार्य पं0 धीरेन्द्र कुमार पांडेय, प्राध्यापक- हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी। निदेशक- काशिका ज्योतिष अनुसंधान केंद्र। मो0: 9450209581/8840966024