आगरा के इस मंदिर में भगवान शंकर ने स्थापित किया था शिवलिंग, द्वापर युग से है इसका नाता

  • ताजनगरी के रावत पाड़ा स्थित श्रीमनकामेश्वर मंदिर शिव मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखता है

मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेशपुरी बताते हैं कि द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, तो उनके दर्शन के लिए शिवजी कैलाश से यहां आए थे. ऐसी मान्‍यता है कि जहां मनकामेश्वर मंदिर स्थापित है, वहां भगवान शंकर ने विश्राम किया था और श्रीकृष्ण के दर्शन किए थे. उनकी वेशभूषा देखकर मां यशोदा डर गई थीं.

आगरा। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर दिन ही भगवान का माना जाता है, लेकिन कुछ दिन ऐसे भी हैं जो कि बेहद खास होते हैं. उन्‍हीं में से एक है महाशिवरात्रि का दिन. महाशिवरात्रि का त्‍योहार हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे भगवान शिव का दिन कहा जाता है. महाशिवरात्रि पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. वैसे तो भगवान अपने भक्त की हर दिन मनोकामना पूरी करते है, लेकिन बताया जाता है कि इस दिन पूजा-आराधना से माता पार्वती और भोले बाबा अपने भक्तों से प्रसन्न होकर हर मनोकामना पूरी करते हैं. महाशिवरात्रि पर्व को लेकर आगरा शहर भर के शिव मंदिर भी सज कर तैयार हैं. महाशिवरात्रि से पहले ही मंदिरों में इस पर्व की तैयारी शुरू कर दी गई थी, जिससे कि श्रद्धालुओ को परेशानी का सामना न करना पड़े.

उन्होंने बताया कि परंपरा के अनुसार महाशिवरात्रि पर्व के दौरान हजारों की संख्या में शिव भक्त यहां आते हैं. और ऐसी मान्यताएं हैं कि भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह मंदिर में आकर देसी घी का दीपक जलाता है.

यह है मंदिर का इतिहास

मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेशपुरी बताते हैं कि द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, तो उनके दर्शन के लिए शिवजी कैलाश से यहां आए थे. इसी स्थान पर जहां आज मनकामेश्वर मंदिर स्थापित है, भगवान शंकर ने विश्राम किया था. और श्रीकृष्ण के दर्शन किए थे. उनकी वेशभूषा देखकर मां यशोदा डर गई थीं. मां यशोदा ने कृष्ण के दर्शन कराने से मनाकर दिया था. उसके बाद कृष्ण भगवान रोने लगे थे. अपनी लीला करने लगे जिसके बाद मां यशोदा ने कान्हा को शिवजी की गोद में खिलाने के लिए दे दिया. लौटते वक्त शिवजी ने खुश होकर खुद अपने हाथ से शिवलिंग की स्थापना की. तब भगवान शिव ने कहा था कि यहां पर जिस प्रकार मेरे मन की कामना पूरी हुई है, ठीक वैसे ही इस शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होगी. इस प्रकार इस मंदिर का नाम मनकामेश्वर मंदिर पड़ा.

शिवलिंग को दूसरी जगह स्थापित करने का किया गया था प्रयास

महंत योगेशपुरी ने बताया कि इस शिवलिंग को दूसरी जगह स्थापित करने के लिए एक नया मंदिर 650 वर्ष पूर्व महंत गणेशपुरी द्वारा दक्षिण- उत्तर भारत की शैली पर बनवाया गया था.और जब शिवलिंग को वहां से हटाकर दूसरी जगह स्थापित करने का सभी लोगों ने प्रयास किया तब वह शिवलिंग गर्भगृह में चली गई. इस वजह से आज भी शिवलिंग के दर्शन करने के लिए भक्तों को मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतर कर आना पड़ता है. इसके बाद महंत गणेशपुरी द्वारा स्थापित 650 वर्ष पूर्व मंदिर में दूसरे शिवलिंग को स्थापित किया गया.

मंदिर में हमेशा लगा रहता है भक्तों का तांता

रावतपाड़े पर स्थित मनकामेश्वर मंदिर में प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है. सावन का सोमवार हो या फिर महाशिवरात्रि इस दिन भक्तों की संख्या अधिक बढ़ जाती है. भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और पूरी होने पर दीपक जलाकर परंपरा को निभाते हैं. मंदिर में एक दिन में 8 बार पूजा अर्चना और आरती होती है.

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