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पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन शैली पर ध्यान देना आवश्यक – आचार्य लोकेश

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्रसंघ पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), यूनाइटेड रिलीजन इनिशिएटिव (URI), रिलीजन वर्ल्ड एवं शृष्टि के संयुक्त तत्वधान में “फेथ फॉर अर्थ कौंसिलर्स: क्षमता निर्माण और विकास कार्यक्रम” पर एक विशेष सभा संयुक्त राष्ट्रसंघ के दिल्ली स्थित भवन पर आयोजित की गयी। यह सभा मुख्यत: भारतीय धर्म गुरुओं एवं धार्मिक संस्थाओं को वैश्विक पर्यावरणीय संकट के निवारण हेतु अपने विशेष समुदाय में नेतृत्व के लिए आयोजित की गई थी जहां जैन धर्म से विश्व शांतिदूत आचार्य डॉ लोकेशजी, सिख धर्म से भाई रंजीत सिंह जी, बौद्ध धर्म से बुद्ध भिक्खु वेनरेबल डॉ धम्मापिया जी, बहाई धर्म से श्री ए के मर्चेन्ट, श्रीमद राजचन्द्र मिशन, धर्मपुर की ओर से अल्पा गांधी व रमन त्रिखा, दिगंबर क्षुल्लक योग भूषण जी आदि विभिन्न धर्मों के धर्माचार्यों ने भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत में इस कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य रूप से रिलीजन वर्ल्ड एवं शृष्टि संस्थाओं के माध्यम से की गई ।

UNEP के प्रधान नीति सलाहकार श्री इयाद अबुमगली द्वारा एक विशेष वीडियो संदेश के माध्यम से धर्म गुरुओं एवं धार्मिक संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में कहा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ सतत विकास लक्ष्यों (UNSDGs) को लागू करने में यह सभी संस्थाएं गेम चेंजर के रूप में साबित होंगे ।

आचार्य डॉ लोकेशजी ने जैन धर्म की ओर से सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए हमे अपनी जीवन शैली पर ध्यान देना होगा | भगवान महावीर ने कहा कि पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति सभी जीव है|  आवश्यकता से अधिक इनका उपयोग न करे| उनका कथन था कि सीमित पदार्थ आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते है परंतु असीम इच्छाओं की पुर्ति नहीं कर सकते| उन्होने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए एवं जीवन शैली को स्वस्थ बनाने हेतु नीति बनाना आवश्यक है और शिक्षा के साथ भी इसे जोड़ना जरूरी है | हमे आने वाली पीढ़ी को भारत की बहुलतावादी संस्कृति के बारे में बताना होगा। युवा पीढ़ी को जल, वायु, पृथ्वी,अन्तरिक्ष को सुरक्षित रखने के दायित्व को समझाना भी आवश्यक है।

गुरुद्वारा बंगला साहिब, दिल्ली के मुख्य ग्रंथि भाई रंजीत सिंह जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अगर अपनी अपनी जिम्मेदारी समझे तो सभी प्रकार की कचरा ,गंदगी और बढ़ती आबादी के लिए स्वयं उपाय करके पर्यावरण संरक्षण में अपनी भागीदारी दे सकता है।

बौद्ध भिक्खु वेनरेबल डॉ धम्मापिया जी ने कहा कि प्रगति के नाम पर पर्यावरण को मानव ने ही सबसे ज्यादा विकृत करने का प्रयास किया है, पर्यावरण व्यापक शब्द है जिसका सामान्य अर्थ प्रकृति द्वारा प्रदान किया गया समस्त भौतिक और सामाजिक वातावरण है। इसके अंतर्गत जल, वायु, पेड़, पौधे, पर्वत, प्राकृतिक संपदा सभी पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक है।

बहाई धर्म के श्री ए के मर्चेन्ट ने कहा कि जन जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से को लोगों और समुदायों को पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के लिए प्रेरित करना आवश्यक है, जिससे लोगो को यह पता चले कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता पर प्रभाव वास्तव में हम में से हर एक को प्रभावित करता है।

श्रीमद राजचन्द्र मिशन, धर्मपुर की ओर से अल्पा गांधी व रमन त्रिखा ने अपने संस्थान द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों से अवगत कराया एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भावी कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान की। दिगंबर क्षुल्लक योग भूषण जी ने कहा कि पर्यावरण सरक्षण को हानि पहुंचाने वाली चीजों का कम उपयोग करना चाहिए जैसे प्लास्टिक के बैग इत्यादि। उन्होने कहा कि पुनरावृति करना चाहिए यानी वापस इस्तेमाल करने योग्य सामान को हमें खरीदने चाहिए जिसे हम वापस उपयोग कर सकते हैं।

इस अवसर पर, UNEP भारत की कार्यक्रम ऑफिसर सुश्री दिव्या दत्त ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि को विस्तृत रूप से बताया। UNEP भारत की शिक्षा सलाहकार सुश्री गायत्री राघवा व यूआरआई भारत की प्रतिनिधि सुश्री सुभी धूपर ने सभा का कुशल संचालन किया एवं रिलीजन वर्ल्ड के संस्थापक श्री भव्य श्रीवास्तव द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।

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