रामराज्य का यथार्थ, समभाव सद्भाव और समर्पण भाव – के.एन. गोविंदाचार्य

अमरकंटक। राष्ट्रीय स्वभिमान आंदोलन के संस्थापक संरक्षक श्री के एन गोविंदाचार्य जी की नर्मदा दर्शन यात्रा और अध्ययन प्रवास का आज 14 वां दिन है। 20 फरवरी को अमरकंटक से यात्रा शुरू हुई थी। श्री गोविंदाचार्य जी नर्मदा जी के दक्षिणी तट की यात्रा सपन्न करके उत्तरी तट पर आगे बढ़ रहे हैं। 3 मार्च को भरुच से उत्तरी तट की यात्रा शुरू हुई थी जो 14 मार्च को अमरकंटक में संपन्न होगी।

शुक्रवार को श्री गोविंदाचार्य जी ने अलीराजपुर के सनातन सेवा आश्रम, नगर भ्रमण के बाद धार के लिए प्रस्थान किया। दोपहर बाद यात्रा दल धार के बर्धा गांव, मेघनाथ की तपस्थली और कोटेश्वर महादेव का दर्शन किया। आज यात्रा का पड़ाव धार के नवाजपुरा गांव में है।
इस बीच बर्धा गांव में लोक संवाद कार्यक्रम में श्री गोविंदाचार्य शामिल हुए। लोगों ने यात्रा दल का हर्षोल्लास से स्वागत किया।
शुक्रवार को आलीराजपुर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ‘स्वराज से रामराज’ पुस्तक के बारे में चर्चा करते हुए श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा, उपनिवेशवाद के कारण भारत की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। हम लोगों ने अंग्रेजों को भगाया। लेकिन वे इस बात में सफल रहे कि प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से भारत पर नियंत्रण बना रहे। आजादी के बाद हम लोगों को अपनी आत्मा के अनुरुप ऊपर उठ जाना चाहिए था उसमें कम पड़े हैं। इस पुस्तक में ऐसे 20 काम को बताया है जो पहले हो जाना चाहिए था।
श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा, रामराज्य का मतलब न कोई भूखा, न कोई नंगा, स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति का परस्पर विकासित हो।
श्री गोविंदाचार्य ने कहा, देश राम मंदिर से राम राज की ओर बढ़े। कुंड, तलाब, कुआं, नदियां सदा नीरा हो और पेड़ वृक्षों से लदे और झुके हुए हों। विकास मानव केंद्रित न होकर प्रकृति केंद्रित हो तभी राम राज की कल्पना साकार होगी।
विश्व में पर्यावरण की स्थिति को लेकर सवाल पर श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा, पंच महाभूत और पंच तन मात्राओं को उनके स्वभाव में केंद्रित करना ही समय का तकाजा है। इसके लिए प्रकृति केंद्रित विकास की जरूरत है। कोरोना और उत्तराखंड में ग्लेशियर का पिघलना बड़ा संकेत है। उन्होंने कहा, नदी की चिंता, जंगल की चिंता, खेती की चिंता, पशु-पक्षियों की चिंता करना होगा। इसी क्रम में उन्होंने कहा, समाज और सरकार विकास के पक्षी के दो पंख हैं। उनके बीच संवाद और विश्वास से हल निकलता है। इस यात्रा के बाद समाज और सरकार के स्तर पर बातों को ले जाया जाएगा और समस्याओं के निदान के लिए प्रयास होगा।
नर्मदा दर्शन यात्रा को लेकर आम लोगों को संदेश देने के सवाल पर श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा, नर्मदा किनारे के लोगों में परंपरागत जीवन शैली रची बसी है। यहां के लोग बहुत ही परिश्रमी है और अतिथि सत्कार का भाव देखकर अभिभूत हूं। जो मध्य प्रदेश का पूरे देश को संदेश है। यहां के लोगों के पास गरीब-अमीर सभी तरह के परिक्रमावासी पहुंचते हैं और सबकी सेवा एक समान भाव से करते हैं। अपनी आर्थिक स्थितियों को सेवा के बीच नहीं आने देते।
श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा, समाज संस्कार और संबंधों से चलता है और मध्य प्रदेश में समाज ऐसे ही चल रहा है।
वार्ता के दौरान श्री गोविंदाचार्य जी ने यात्रा के उदेश्यों को स्पष्ट करते हुए बताया कि इसमें दो धाराएं हैं। एक धार्मिक-आध्यात्मिक और दूसरी अध्ययन-प्रवास की। अध्ययन-प्रवास के जरिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं को देखते हुए हम सभी आ रहे हैं।
उन्होंने कहा, पिछले 200 सालों में विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन का भरपूर दोहन हुआ है। साल 2030 तक जल, जंगल, जमीन के प्रति समाज और सरकार को चेतना होगा। इसके लिए विकास की परिभाषा बदलना होगा। विकास के आकलन का आधार GDP के बजाय मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास को आधार बनाना होगा।

श्री गोविंदाचार्य ने कहा कि विदेशी पूंजी का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में पड़ने वाला प्रभाव असरकारी है। बड़ी पूंजी ताकत रखती है। विदेशी पूंजी के लाभ-हानि का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।
विदेशी पूंजी से गांव को कोई लाभ नहीं पहुंचा, शहरों की थोड़ी स्थिति बदली है। परंतु समाज में हिंसा, अपराध, गैर-बराबरी बढ़ने के साथ महिला और कारिगर की स्थिति सामाजिक व सांस्कृतिक स्तर पर पशुवत हुई है। उपभोग की आशंका बढ़ी है। अब सोचा थोड़ा घुमकर देखना चाहिए। सत्य, न्याय और धर्म को समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

22,046FansLike
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles