“परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और बागेश्वर धाम सरकार श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने किये श्री केदारनाथ धाम के दर्शन”
- स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने इको टूरिज्म को बढ़ावा देने का दिया संदेश
- तीर्थयात्राओं से मिलती है आध्यात्मिक मुक्ति – स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और बागेश्वर धाम सरकार श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने आज प्रातःकाल भगवान आशुतोष के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक श्री केदारनाथ धाम के दर्शन किये।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि तीर्थस्थलों के दर्शन का धार्मिक और पौराणिक महत्त्व है; दर्शन मात्र से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं तथा आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है। चार धाम यात्रा न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि उत्तराखंड के लिये एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और पर्यटन का अद्भुत केन्द्र भी है, जो पूरे भारत और दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करता है।
यात्रायें यह स्थानीय समुदायों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो रोजगार के अवसर प्रदान करने के साथ पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देती है। भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन और युवा मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री पुष्कर सिंह धामी जी के प्रयासों से चारों धामों की बेहतर कनेक्टिविटी और तीर्थ पर्यटन में भी सुधार हुआ है।
स्वामी जी ने कहा कि हिमालय के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण वह कई संस्कृतियों और धर्मों का संगम स्थल है। इनमें प्रतिष्ठित तीर्थ स्थल, मठ और मंदिर ध्यान, आत्म-खोज और आत्मज्ञान की प्राप्ति का अद्भुत केन्द्र है।
हिमालय की दिव्यता के साथ ही उसकी आश्चर्यजनक सुंदरता और आकर्षण के कारण उसने अनेकों पीढ़ियों को अपनी ओर आकर्षित किया है परन्तु जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों की बर्फ पिघल रही है, इससे मौसम का पैटर्न बाधित हुआ है । हिमालय पारिस्थितिकीय के संतुलन को बनाए रखने के लिये उस पर तत्काल ध्यान देने और सहयोगात्मक प्रयास करने की आवश्यकता है।
हिमालय दुनिया के जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है तथा हिमालय के ग्लेशियर गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और यांग्त्जी जैसी प्रमुख नदियों के स्रोत स्थल हैं। ये नदियाँ पूरे दक्षिण एशिया में लाखों लोगों के लिए जीवनधारा हैं इसलिये हिमालय की गोद में बसे इन दिव्य तीर्थ स्थलों के लिये इकोटूरिज्म को बढ़ावा देना होगा। साथ ही हिमालयी समुदायों की विशिष्ट सांस्कृतिक प्रथाओं, प्राकृतिक जीवनशौली अपनाने के साथ ही इसके प्राकृतिक परिवेश के साथ गहराई से जुड़ना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। जिस राष्ट्र का इतिहास जितना गौरवमयी होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही उत्कृष्ट व दिव्य होता है इसलिये हमारे मन्दिर, धार्मिक स्थल, इमारतें और लिखे गए शस्त्र व साहित्य उन्हें सदैव जीवंत व जागृत बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यही हमारी गौरवशाली सभ्यता और प्राचीन संस्कृति की परिचायक है। हमारी धार्मिक यात्रायें हमें यही संदेश देती है।