नई दिल्ली। हिंदी पंचांग के मुताबिक हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ व्रत रखा जाता है। इस बार करवा चौथ 13 अक्टूबर गुरुवार को मनाया जाएगा। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंम्बी उम्र और खुशहाल दंम्पति जीवन के लिए करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती है। सुहागिनों के लिए करवा चौथ सभी व्रतों में अधिक महत्व रखता है। अपने सुहाग की रक्षा, दीर्धायु और खुशहाली के लिए महिलाएं सुबह से लेकर रात चांद निकलने तक अन्न, जल का त्याग कर करवा चौथ का व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो पत्नी पूर्ण विश्वास के साथ माता करवा की पूजा करती हैं उसके पति पर कभी कोई आंच नहीं आती।
“करवा चौथ पूजा का मुहूर्त और कथा के सम्बन्ध में एस्ट्रोलॉजर कृष्णा शर्मा ने बताया कि करवा चौथ व्रत की शुरुआत 13 अक्टूबर गुरुवार को 06.25 मिनट से होगी और चांद निकलने तक यानी कि रात 8.19 तक व्रती को निर्जला व्रत करना होगा. करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06.01 से रात 07 बजकर 15 मिनट तक फलदाई होगा।”
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। जंग के मैदान में दानव देवताओं पर हावी हो गए थे। युद्ध में सभी देवताओं को संकट में देख उनकी पत्नियां विचलित होने लगीं। पति के प्राणों की रक्षा के उपाय हेतु सभी स्त्रियां ब्रह्मदेव के पास पहुंची।
ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों से करवा चौथ व्रत करने को कहा। ब्रह्मदेव बोले कि इस व्रत के प्रभाव से देवताओं पर कोई आंच नहीं आएगी और युद्ध में वह बिजय प्राप्त करेंगे। ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया। जिसके परिणाम स्वरूप करवा माता ने देवताओं के प्राणों की रक्षा की और वह युद्घ में विजयी हुए। इस पवं से जुड़ी एक कथा महाभारत काल में भी इस व्रत का महत्व मिलता है। एक प्रसंग के अनुसार जब पांडवों पर संकट के बादल मंडराए थे तो द्रोपदी ने श्रीकृष्ण द्वारा बताए करवा चौथ व्रत की पूजा की थी। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को संकटों से छुटकारा मिला था।