वाराणसी। करवा चौथ को करक चतुर्थी व्रत भी कहा जाता है एवं इस व्रत की कथा एवं विधि का वर्णन वामन पुराण में प्राप्त है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 01 नवम्बर 2023 दिन बुधवार को है एवं चंद्रार्घ का समय रात्रि 8 बजे है। कभी कभी यदि यह व्रत दो दिन चन्द्रोदयव्यापिनी हो जाए या दोनों ही दिन न हो तो ‘मातृविद्धा प्रशस्यते’ के अनुसार पूर्व विद्धा लेना चाहिये। इस व्रत में शिव-शिवा, स्वामी कार्तिक और चन्द्रमा का पूजन करना चाहिये और नैवेद्य के रूप में काली मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी ढालकर बनाये हुए करवे या घी में सेंके हुए और खाँड मिले हुए आटे के लड्डू अर्पण करने चाहिये। इस व्रत को विशेषकर सौभाग्यवती स्त्रियाँ अथवा उसी वर्ष में विवाही हुई लड़कियाँ करती हैं और नैवेद्य के १३ करवे या लड्डू और १ लोटा, १ वस्त्र और १ विशेष करवा पति के माता-पिता को देती हैं। व्रती को चाहिये कि उस दिन प्रातः स्नानादि नित्यकर्म करके ‘मम सुख सौभाग्य-पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्रीप्राप्तये करकचतुर्थी व्रतमहं करिष्ये ।’ यह संकल्प करके बालू (सफेद मिट्टी) की वेदी पर पीपल का वृक्ष लिखे और उसके नीचे शिव-शिवा और षण्मुख की मूर्ति अथवा चित्र स्थापन करके ‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं
संततिं शुभाम् । प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे ॥’ से शिवा (पार्वती) का षोडशोपचार पूजन करे और ‘नमः
शिवाय’ से शिव तथा ‘ षण्मुखाय नमः’ से स्वामिकार्तिक का पूजन स्वयं या विद्वान ब्राह्मण द्वारा कराके नैवेद्य का पक्वान्न (करवे) और दक्षिणा ब्राह्मण को देकर चन्द्रमा को अर्घ्य दें और फिर भोजन करें । इसकी कथा का सार यह है कि- ‘शाकप्रस्थपुर के वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करकचतुर्थी (करवाचौथ) का व्रत किया था। नियम यह था कि चन्द्रोदय के बाद भोजन करे। परंतु उससे भूख नहीं सही गयी और वह व्याकुल हो गयी। तब उसके भाई ने पीपल की आड़ में महताब (आतिशबाजी) आदि का सुन्दर प्रकाश फैलाकर चन्द्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करवा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अलक्षित हो गया और तब वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी का व्रत किया तब उसका पति पुनः प्राप्त हुआ। इस प्रकार यह व्रत सभी विवाहित महिलाओं को अपने पति के लम्बी आयु के लिए अवश्य करना चाहिए।