राष्ट्रीय स्वभिमान आंदोलन के संस्थापक संरक्षक श्री के एन गोविंदाचार्य जी की नर्मदा दर्शन यात्रा और अध्ययन प्रवास का आज 19 वां दिन है। 20 फरवरी को अमरकंटक से यात्रा शुरू हुई थी। श्री गोविंदाचार्य जी नर्मदा जी के दक्षिणी तट की यात्रा सपन्न करके उत्तरी तट पर आगे बढ़ रहे हैं। 3 मार्च को भरुच से उत्तरी तट की यात्रा शुरू हुई थी जो 14 मार्च को अमरकंटक में संपन्न होगी।
बुधवार को यात्रा की शुरुआत सागर जिले के शांति धाम अतिशय क्षेत्र बीनाजी से हुई। यहां ब्रह्मचारी विनय सागर जी की अगुवाई में हथकरघा और गिर गोशाला प्रकल्प चलाया जा रहा है। श्री गोविंदाचार्य जी ने प्रकल्पों का भ्रमण किया। इस दौरान हथकरघा कारीगरों से लोक-संवाद में श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा कि भारत की तासीर को समझ कर भोजन और काम की व्यवस्था होनी चाहिए। यहां के कामों देख कर बहुत अच्छा लगा। और भी ऐसे बहुत से काम हो सकते हैं जो भारत की तासीर के हिसाब से हैं। ऐसे कौन-कौन से काम हो सकते हैं यह सवाल आप सभी के बीच छोड़ कर जा रहा हूं।
संवाद के क्रम में श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा, भारत में 10 महीने से ज्यादा सूर्य की रोशनी प्राप्त होती है जिससे यहां की गोमाता में स्वर्ण पित्त क्षार बनता है। जो पूरी सृष्टि का शोधन करता है। गो माता का दूध, गो मूत्र, गोमय, गो माता के श्वास नि:श्वास से पंच महाभूत का शोधन होता है।
श्री गोविंदाचार्य जी ने संस्था के सामने विचार रखा कि स्वर्ण पित्त क्षार पर आगे शोध करने की आवश्यकता है।
नर्मदा दर्शन यात्रा के संबंध में बताते हुए श्री गोविंदाचार्य जी ने कहा कि नर्मदा किनारे के लोगों में सभ्यता मूलक भावनाएं गहरी हैं जो दुनिया में बेमिसाल है। देश में वर्ष दर वर्ष चलने वाली परिक्रमावासियों का ऐसा दृश्य कहीं दिखाई नहीं देता।
प्रकृति केंद्रित विकास को लेकर उन्होंने जबलपुर के लोगों से कहा, आपके पास जितना खेत हो उसमें पेड़ लगाने और गोपालन करें। अपने खेत के 5% में तालाब, 5% में चारा खेती और 20% में पंचस्तरीय बागवानी जरूर लगाएं। तभी होगा स्वस्थ विकास।
उन्होंने कहा, दुनिया में पिछले 500 सालों में उपनिवेशवाद, हथियारवाद, सरकारवाद और बाजारवाद को लोक कल्याण के लिए अपनाया गया। लेकिन गरीबी बढ़ी ही है। 30 साल पहले पहले दुनिया की आबादी 600 करोड़ थी और 55 करोड़ लोग $1 से कम में जीवन जीने को मजबूर थे आज दुनिया की आबादी 700 करोड़ के पार है और 135 करोड़ से ज्यादा लोग $1 से कम में गुजारा कर रहे हैं। पिछले सालों में विकास के तरीके सही होते हैं तो निश्चित तौर पर गरीबी खत्म हुई होती। ये मानव केंद्रित विकास की असफलता है। अब इसकी जगह प्रकृति केंद्रित विकास की जरूरत है। जिसमें जल, जंगल, जमीन, जानवर और जन का जीवन अनुकूल हो। आज की यात्रा के दौरान यात्रा दल का हर्षोल्लास से स्वागत किया गया। जो जबलपुर के छरौआ घाट, नृत्य गोपाल मंदिर न्यास पाटन, प्रज्ञा धाम और अंत में जीविका आश्रम पहुंचा।