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“जन सेवा ही जनार्दन सेवा” और “नर सेवा ही नारायण सेवा” है – स्वामी चिदानंद सरस्वती

“परमार्थ निकेतन, डिवाइन शक्ति फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में मायाकुण्ड, बिहारी बस्ती में निःशुल्क स्वास्थ्य चिकित्सा, नेत्र चिकित्सा और दंत चिकित्सा जांच शिविर का आयोजन”

  • स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी का विशेष आशीर्वाद और सान्निध्य
  • सीमा डेण्टल काॅलेज और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र यमकेश्वर, जनपद पौड़ी गढ़वाल का उत्कृष्ट सहयोग
  • परमार्थ निकेतन द्वारा विशाल भंडारे का आयोजन
  • अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के पश्चात ‘सेवा सेलिब्रेशन’
  • भारत सहित विश्व के अनेक देशों से आये योगियों ने अपने हाथों से परोसा भोजन

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में मायाकुण्ड, बिहारी बस्ती में निःशुल्क स्वास्थ्य चिकित्सा, नेत्र चिकित्सा और दंत चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती जी, अगापे इंटरनेशनल स्पिरिचुअल सेंटर अमरीका के संस्थापक रेवरेंड माइकल बेकविथ, प्रसिद्ध उद्योगपति और समाज सेवी श्री विनोद बागरोडिया जी, सीमा डेन्टल काॅलेज के डीन डा हिमांशु ऐरण, शिकागो से आये विक्रम शाह और अनेक विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर निःशुल्क चिकित्सा शिविर और विशाल भंडारे का शुभारम्भ किया।

साध्वी भगवती सरस्वती जी और विदेश से आये योगियों के दल ने समुदाय वासियों को स्वच्छता का महत्व बताते हुये हैंड सेनेटाइजर वितरित किये।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जन सेवा ही जनार्दन सेवा है; नर सेवा ही नारायण सेवा है। जीवन का धर्म ही है मानव सेवा और मानवता की सेवा करना है। भारतीय संस्कृति में सेवा का बड़ा ही महत्व है। सेवा से अहंकार का नाश होता है, विनम्रता और सरलता का भाव जागृत होता है। सेवा का भाव हमें भक्ति की ओर ले जाता है तथा सेवा का भाव हमें ईश्वर के करीब ले जाता है।

स्वामी जी ने संदेश दिया कि हमारी संस्कृति में सेवा को ही सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है। ‘सेवा परमो धर्मः’, सेवा परम धर्म का सूत्र हमें आत्मोद्धार की ओर ले जाता है। सेवा से तात्पर्य दान, त्याग तथा समर्पण भाव से है। जरूरत मंदों की सेवा के साथ – साथ हम अपने-आप की भी सेवा करते हैं। सेवा से संतुष्टि का भाव जागृत होता हैैै। सेवा करने से आत्मसंतोष, मानसिक तृप्ति, संवेदनशीलता, आत्मानुशासन और समर्पण के मानवीय भावों तथा गुणों में अभिवृद्धि होती है और आत्मिक शक्तियों का विकास होता है तथा आत्मबल में भी वृद्धि होती है।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि सभी मनुष्य ईश्वर की ही संतान हैं। सेवा से यह भाव जागृत होता है कि सम्पूर्ण मानवता में ईश्वर का स्वरूप समाहित है। भारतीय संस्कृति में परहित को सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है। परहित के संदर्भ में ‘रामचरितमानस’ में बहुत ही सुन्दर उल्लेख किया गया है। साध्वी जी ने कहा कि यही योग से सहयोग की यात्रा है।

इस चिकित्सा शिविर में डा राजीव, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र यमकेश्वर, जनपद पौड़ी गढ़वाल और डा हिमांशु ऐरण, सीमा डेंटल कालेज, ऋषिकेश ने उत्कृष्ट सहयोग प्रदान किया।

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