- भारत के चार राज्यों से 23 घाटों के 35 पुरोहितों ने किया सहभाग
- गंगा जी के प्रति जागरूकता और आरती प्रशिक्षण कार्यशाला परमार्थ निकेतन, नमामि गंगे और अर्थ गंगा की अद्भुत पहल
- परमार्थ निकेतन गंगा आरती में भारत के सभी राज्यों के डिविशनल फारेस्ट ऑफिसर और आई एफ एस अधिकारियों ने सहभाग किया
- गंगा जी के तट हमारी संस्कृति के केन्द्र स्वच्छता ही सेवा है; स्वच्छता ही धर्म-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में तीन दिवसीय गंगा जी के प्रति जागरूकता और आरती प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ। परमार्थ निकेतन, नमामि गंगे और अर्थ गंगा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस आरती प्रशिक्षण कार्यशाला में भारत के चार राज्यों से 23 घाटों के 35 पुरोहितों ने सहभाग किया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में संचार विशेषज्ञ नमामि गंगे उत्तराखंड श्री पूरण कापड़ी जी, जीवा की डायरेक्टर सुश्री गंगा नंदिनी त्रिपाठी जी, प्रशिक्षक वंदना शर्मा जी और सभी प्रतिभागियों ने दीप प्रज्वलित कर तीन दिवसीय कार्यशाला का विधिवत शुभारम्भ किया।
प्रतिमाह आयोजित इस कार्यशाला में गंगा बेसिन और गंगा जी के तट पर स्थित राज्यों के विभिन्न घाटों के पुरोहितों को प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे परमार्थ निकेतन गंगा आरती की तर्ज पर गंगा आरती के माध्यम से जन जागरूकता के मंच के रूप में अपने घाटों को विकसित कर सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ये भारत का सौभाग्य है कि भारत के पास माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जैसा नेतृत्व है जो इस तरह से सोचते है कि जन सामान्य को किस चीज की जरूरत है, समाज को समावेशी, समृद्ध और समरसता से युक्त बनाये रखने के लिये किन-किन चीजों की जरूरत है। समाज को जिन चीजों की जरूरत है उनमें सबसे पहली जरूरत है ‘स्वच्छता’। स्वच्छता बाहर और स्वच्छता भीतर, बाहर से व्यवस्थित और भीतर से स्थित। बाहर की स्वच्छता व्यवस्था के बढ़िया होने का संकेत देती है लेकिन भीतर की स्वच्छता दिल के विशाल होने का संकेत देती है।
स्वामी जी ने कहा कि जब जीवन में स्थिरता होती है जो जीवन में स्पष्टता दिखायी देने लगती है तथा जीवन में सच्चाई और ऊँचाई भी होती है। सफाई, सच्चाई और ऊँचाई ये जीवन के मंत्र बने उसके लिये भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री जी ने सबसे पहले शौचालयों की बात की। भारत सरकार ने शौचालयों का निर्माण कर देश की मातृ शक्ति को वंदन किया क्योंकि ‘देवी स्वस्थ तो देश स्वस्थ’। उन्होंने गंगा जी और अन्य नदियों की स्वच्छता का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गंगा के तट हमारी संस्कृति के केन्द्र है। ये संस्कृति के केन्द्र स्वास्थ्य के भी केन्द्र बनें क्योंकि स्वच्छता है तो स्वास्थ्य है; स्वच्छता ही सेवा है; स्वच्छता ही धर्म है।
इस कार्यशाला के अवसर पर स्वामी जी ने भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और जल शक्ति मंत्रालय को धन्वाद देते हुये कहा कि इनके अद्भुत प्रयासों से गंगा जी के तटों से स्वच्छता का आह्वान किया जा रहा है।
स्वामी जी ने सभी पुरोहितों का आह्वान करते हुये कहा कि आप सभी गंगा के तटों पर अवस्थित होकर स्वच्छता का संदेश घर-घर पहुंचायें। वर्तमान समय में भारत के पास श्रेष्ठ नेतृत्व है, सरकार अपना कार्य कर रही है अब हमारी भागीदारी का समय है। हम गंगा जी के तटों पर रहने वाले गंगा सहित अन्य नदियों के पैरोकार व पहरेदार बने ताकि तटों पर प्रदूषण न हो और गंगा जी भी प्रदूषण मुक्त रहे।
स्वामी जी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि हम गंगा के तटों पर रहने वाले अपने जीवन को, अपने देश को और अपनी नदियों को पर्यावरण से युक्त व प्रदूषण से मुक्त करे, यही हम सभी का कर्तव्य हो। अब समय आ गया कि हर तट व हर घाट से आरती हो और हर घाट से हर घर में आरती का संदेश पहंुचे।
स्वामी जी ने कहा कि मन्दिरों में जाना बहुत अच्छी बात है लेकिन घर को मन्दिर बना लेना, जीवन को मन्दिर बना लेना यह सबसे बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि नदियों के तटों से यह संदेश भी जाये कि देवभक्ति; देव पूजा अपनी-अपनी परन्तु देशभक्ति सभी मिलकर करे ताकि देव से देश की यात्रा व राम से राष्ट्र की यात्रा का शुभारम्भ हो।
संचार विशेषज्ञ नमामि गंगे उत्तराखंड श्री पूरण कापड़ी जी ने बताया कि इस बार चार राज्यों से प्रतिभागी गंगा जागरूकता व आरती प्रशिक्षण हेतु आये है। यह हमारी पांचवी कार्यशाला है। अभी तक जितनी भी कार्यशालायें हुई है उन सभी घाटों पर सुव्यवस्थित आरती का क्रम शुरू हो गया है। गंगा जी की आरती के साथ राष्ट्र भक्ति का संदेश भी प्रसारित किया जा रहा है। कई स्थानों पर आरती शुरू होने के पश्चात घाट बनने शुरू हुये क्योंकि उस आरती को संज्ञान में लेकर सरकार ने वहां पर कार्य शुरू किया यह इस कार्यशाला की एक बड़ी सफलता है।
परमार्थ निकेतन में प्रतिमाह गंगा जागरूकता व आरती कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। इस कार्यशाला के माध्यम से प्रतिभागी प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण और देव भक्ति के साथ देश भक्ति का संदेश लेकर जाते हैं।