पेड़ बचेंगे तो प्राण बचेेंगे, पृथ्वी बेचेगी तो पीढ़ियाँ बचेंगी – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

  • अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस ‘वन और स्वास्थ्य’
  • वन रूपी विरासत को सहेजना हम सभी का परम कर्तव्य

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण और पौधारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का संदेश दिया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी विगत अनेक वर्षों से परमार्थ निकेतन गंगा आरती के माध्यम से प्रतिदिन रूद्राक्ष के पौधों को उपहार स्वरूप भेंट करते हैं ताकि पौधों के रोपण का संदेश गंगा आरती के इस विश्व विख्यात मंच से दूर तक जाये। इस दिव्य मंच से अब तक लाखों-लाखों पौधों को वितरित किया गया है। स्वामी जी इस मंच से न केवल रूद्राक्ष के पौधों का वितरण करते हैं बल्कि जनसमुदाय के पौधा रोपण के लिये जागरूक और प्रेरित भी करते हैं।

परमार्थ निकेतन में आने वाले सभी अतिथियों को प्रत्येक पर्व, त्यौहार, जन्मदिन और विवाह दिवस पर पौधा रोपण और पौधों को उपहार स्वरूप भेंट करने की अद्भुत परम्परा है ताकि हमारे साथ-साथ पृथ्वी का स्वास्थ्य भी बना रहे।

स्वामी जी ने कहा कि भारत न केवल अपने उत्कृष्ट स्थापत्य, निर्माणों और संस्कृति के लिये प्रसिद्ध है, बल्कि अपने सघन एवं विशाल वन विरासत के लिये भी प्रसिद्ध है। भारत के पास अद्भुत गुणकारी पौधों को भंडार है परन्तु वे इसी वेग से कटते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम इस भंडार को खो देंगे।

पृथ्वी पर एक तिहाई भूमि वनों से आच्छादित है, जो जल चक्र को बनाए रखने, जलवायु को विनियमित करने और जैव विविधता के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि निर्धनता उन्मूलन के लिये भी वन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

वन 86 मिलियन से अधिक लोगोें को हरित रोजगार प्रदान करते हैं। इस ग्रह के प्रत्येक जीव का वनों से किसी न किसी रूप में संपर्क बना रहा है। जीवनदायिनी आॅक्सीजन हमें पौधों से ही प्राप्त होती है। वन भारत की आप्लावित मानव जाति का घर हैं और वन पर्यावरण का अभिन्न अंग भी हैं।

भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने के लिये आदर्शतः वन क्षेत्र के अंतर्गत कुल भौगोलिक क्षेत्र का कम से कम 33 प्रतिशत होना चाहिये परन्तु वर्तमान में भारत में केवल 21.71 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को कवर करता है जो दिन प्रति दिन घटता जा रहा है।

स्वामी जी ने कहा कि भारतीय सभ्यता की पहचान हमारे आदिवासी समुदाय के भाई-बहन अपने अस्तित्व के लिये वन क्षेत्रों पर ही निर्भर रहते हैं और उनके वनों और वन्य संपदा से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं लेकिन वनों की निरंतर कटाई, राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों एवं इको-पार्कों का विकास आदि उनके पर्यावास पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। उनके पर्यावास एवं आजीविका में हस्तक्षेप उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार बना सकते है।

स्वामी जी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि अपने पर्व, त्यौहार, जन्मदिवस और विवाहदिवस को पर्यावरण संरक्षण से जोड़े ताकि अपना, अपने ग्रह और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित रह सके।

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