मथुरा वृन्दावन/ मदन सारस्वत। वैदिक यात्रा गुरुकुल व श्रीमद्भागवत विद्यालय के आचार्य, छात्र-ऋषिकुमारों को साथ लेकर काशी विद्वत्परिषद् पश्चिमांचल के प्रभारी कार्ष्णि नागेन्द्र दत्त गौड़ ने सपरिवार सन् 1990 में मानवता पर हुई बर्बरता के ऊपर बनी मूवी (चलचित्र) द कश्मीर फ़ाइनल्स को वृन्दावन के जादू सिनेमा हॉल में देखा। मानवता सिसक-सिसक कर रो रही थी और राजतंत्र केवल अपने स्वार्थ की राजनैतिक रोटियाँ सेंकने में लगा था। हमारे इतिहास में कितना बड़ा फेर बदल किया, इसमें ग़लत शिक्षा प्रणाली भी बराबरी की दोषी है। मीडिया जो कि संविधान का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, उसने भी सच न बताया। इस चलचित्र में पुष्कर पण्डित के किरदार को निभा रहे अभिनेता अनुपम खेर ने सही कहा था कि झूठ दिखाने से ज़्यादा ख़तरनाक सच को छिपाना होता है और वही हुआ। इसलिए यहाँ मीडिया को भी दोष के घेरे से बाहर रखना अनुचित होगा।
कार्ष्णि नागेन्द्र महाराज ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार स्वर्ग सी उस भूमि का नाम ऋषि कश्यप के ही नाम पर कश्मीर हुआ । यहाँ तक कि कैस्पियन सागर नाम भी कश्यप ऋषि के नाम पर ही पड़ा है। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी और उक्त क्षेत्र में ही दक्ष राजा का भी साम्राज्य भी था। कश्मीरी हिन्दुओं का दर्द फिर छुपाने की साज़िश हुई, वो हक़ीक़त सबके सामने न आ जाये, उसे रोकने की साज़िश हुई, जहाँ भगवान् शिव, सरस्वती, ऋषि कश्यप हुए। यह केवल कश्मीरी पण्डितों का क्रूर नरसंहार नहीं था, बल्कि; पूरी हिन्दू मानवता का बर्बरता पूर्वक संहार था।
अनुराग कृष्ण शास्त्री ने कहा कि अतीत को बदला नहीं जा सकता लेकिन इस अतीत से वर्तमान में बहुत कुछ सीखा जा सकता है और हिन्दुत्व की एकता से अखण्ड-सशक्त भारत का पुनः निर्माण किया जा सकता है।
संस्था सचिव डॉ कृष्ण कुमार शर्मा ने कहा कि वर्तमान सरकार को अब कश्मीरी पण्डितों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिये। जयपुर निवासी श्री अनिरुद्ध श्रोत्रिय, श्रीमती ज्योति शर्मा मीनाक्षी दत्त गौड़ उपेंद्र मनु गौड़ तथा मथुरा से शैलेंद्र गौतम व प्रवीण अग्रवाल भी फ़िल्म को देखकर भावुक हुए।