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भागवत के श्रवण मात्र से जीवित ही नही मृत प्राणियों का भी उद्धार हो जाता है – डॉ रामलाल त्रिपाठी

मिर्जापुर। अपना शुक्ल परिवार के संयोजन में लाल डिग्गी स्थित कुमार उत्सव भवन में चल रहे श्री मद्भागवत कथा सप्ताह के छठे दिन कथा व्यास आचार्य डॉ रामलाल त्रिपाठी ने भगवान श्री कृष्ण के साथ साथ भागवत कथा के भी महत्व का सुंदर विवेचन किया।

आचार्य डा. त्रिपाठी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने कंस के साथ ही उसके अत्याचारों को भी समाप्त करके सुंदरतम गृहस्थ जीवन व्यतीत करने का आदर्श स्थापित किया। श्री कृष्ण को समस्त शास्त्रों के सर्वश्रेष्ठ विद्वान एवं योग योगेश्वर के रूप में विभूषित किया गया है। डा. त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि इस धरा पर कृष्ण जैसा कोई नहीं। भगवान के अनेक गुणों को अपनी अपनी क्षमता के अनुसार विद्वानों और महापुरुषों ने धारण किया। डा. त्रिपाठी ने आगे कहा कि श्री कृष्ण साक्षात् परमात्मा के अवतार हैं।

डा त्रिपाठी ने भागवत की महत्ता को उल्लेखित करते हुए कहा कि एक मानव का आदर्श जीवन कैसा होना चाहिए, यह शिक्षा हमें भागवत से प्राप्त होती है। भागवत के अंतर्गत न सिर्फ राक्षसों के अहंकार के समाप्ति की कथा है, साथ ही भक्तों को आनंदमय जीवन जीने की शिक्षा भी है। श्री कृष्ण के बाल क्रीड़ा से लेकर शिक्षा -दीक्षा ग्रहण करने और उनके द्वारा राजाओं के प्रति व्यवहार करने की उत्तमोत्तम शिक्षा भागवत में विद्यमान है।

डा त्रिपाठी ने श्री कृष्ण संग सुदामा के संबंधों का सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि इनके मैत्री का उदाहरण आज भी लोग प्रस्तुत करते हैं।

भागवत कथा के दौरान ही अपना शुक्ल परिवार के बच्चों द्वारा सुदामा चरित का सुंदर प्रस्तुतिकरण भी किया गया। अंत में डा. त्रिपाठी ने भागवत की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि भागवत एक ऐसा ग्रंथ है जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण समाज के लिए शिक्षा विद्यमान है जिसके श्रवण से न सिर्फ जीवित बल्कि मृत प्राणियों का भी उद्धार हो जाता है। आज कलियुग में भी सर्वश्रेष्ठ पुराण के रूप में भागवत कथा कहने एवं सुनने की चल रही परंपरा इसके महत्व को साबित करने के लिए पर्याप्त है।

इस अवसर पर सुदामा चरित्र पर आधारित लघुनाटिका का मंचन किया गया, जिसमें उमेश, वेद, सगुन, इशांत एवं विघ्नेश की भूमिका सराहनीय रही।

आज कथा के दौरान सर्वश्री रमाकांत त्रिपाठी, लक्ष्मी कांत त्रिपाठी, इन्द्र मोहन दुबे, मदन लाल गुप्त, लक्ष्मी नारायण, धीरेन्द्र दत्त मिश्र, अशोक मिश्र, कृष्णानंद शुक्ल, डा. भवभूति मिश्र, श्रीमती सुनीति मिश्रा, अनुराधा, सहित अपना शुक्ल परिवार के गया यात्री एवं अन्य सदस्यगण उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्री मोहन शुक्ल ने कहा कि लवकुश, महेश, गोपाल, वैभव के प्रबंधन के कारण ही यह ज्ञान यज्ञ सफलता की ओर अग्रसर है। धन्यवाद ज्ञापन शिव कुमार शुक्ल ने किया।

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