बुशरा असलम।
लखनऊ। घोसी उपचुनाव में सत्तारूढ भाजपा एव सपा के बड़े नेताओं की साख दांव पर है। बीजेपी के सहयोगी ओपी राजभर और अंसारी बंधुओं पर सबकी नजरे टिकी हैं। अगर घोसी में कमल खिला तो एनडीए के पास अगामी चुनाव मे विपक्षी गठबंधन पर हावी होने का बेहतरीन मौका मिल जाएगा।
एक रिपोर्ट-
छ: राज्य की सात सीटो के उपचुनाव मे उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा पर भी मतगणना जारी है। यहा भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान तथा सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह की साख दांव पर लगी हुई है। इस उपचुनाव को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। ये चुनाव सिर्फ प्रत्याशीयो के बीच नही है, बल्कि मुकाबला एनडीए बनाम विपक्षी गठबंधन (INDIA) के बीच मे है। ऐसे में यदि घोसी में कमल खिला तो एनडीए विपक्षी गठबंधन INDIA पर हमलावर हो जाएगा, लेकिन भाजपा हारी तो ओपी राजभर के दावो पर प्रश्न उठेगे।
घोसी विधानसभा लेफ्ट के बाद बसपा का मजबूत गढ़ रहा है। पिछले नतीजों को देखा जाए तो पता चलता है कि सपा पहली बार 2012 में यह सीट जीतने में सफल हुई थी। लेकिन अगले ही चुनाव मे उसने ये सीट गवां दी। भाजपा ने 2017 मे इस सीट पर जीत हासिल की,जिसे उसने 2019 उपचुनाव में भी बनाए रखा। 2022 के चुनाव मे में बीजेपी से सपा में आए दारा सिंह चौहान विधायक बने, पर एक साल बाद ही वो इस्तीफा देकर घर वापसी कर गए। दारा सिंह की घर वापसी के चलते यहा उपचुनाव हुए हैं। अब यहा साइकिल दौड़ेगी या कमल खिलेगा इसका निर्णय तो नतीजे ही बताएंगे।
घोसी विधानसभा उपचुनाव प्रदेश के दिग्गजो के लिए एक अहम चुनाव है। एक तरफ डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।वही दूसरी ओर सपा महासचिव शिवपाल यादव और अंसारी बंधुओं के लिए खुद को साबित करने की चुनौती है। चूंकि यह सीट मुख्तार अंसारी के प्रभाव वाली रही है। और शिवपाल ने शुरू से ही चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथों में ले रखी थी। ऐसे में घोसी के नतीजे दारा सिंह और सुधाकर के नहीं बल्कि बृजेश पाठक, शिवपाल, अंसारी बंधु और राजभर के सियासी भविष्य का फैसला करेगे।
दाव पर लगी राजभर की साख
सपा गठबंधन से अलग हो बीजेपी के साथ हाथ मिलाने वाले सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के लिए ये चुनाव साख की बात है। भाजपा से हाथ मिलाने बाद ये उनका पहला उपचुनाव है।घोसी सीट राजभर के प्रभाव वाली मानी जाती है। घोसी विधानसभा मे 52 हजार राजभर समुदाय के वोट हैं। ऐसे मे यदि ओम प्रकाश इस चुनाव में राजभर वोट बीजेपी में ट्रांसफर नहीं करा पाए। तो उनका ना सिर्फ सियासी कद घटेगा बल्कि साख पर भी सवाल उठेंगे।
बृजेश पाठक की अग्निपरीक्षा
दारा सिंह चौहान की बीजेपी मे घर वापसी का श्रेय बृजेश पाठक को दिया जाता है, दोनों ही नेता बसपा में रहे हैं। बृजेश पाठक के लिए ये उपचुनाव जीतना अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। इसी कारण बृजेश पाठक, दारा सिंह चौहान के नामांकन से चुनाव प्रचार तक घोसी में डेरा जमाए रहे है।
दांव पर शिवपाल की प्रतिष्ठा
घोसी विधानसभा सीट पर सपा की जीत को शिवपाल यादव से जोड़कर भी देखा जा रहा है।सुधाकर सिंह के लिए सबसे ज्यादा मशकक्त करने वाले शिवपाल गांव-गांव घूमकर सुधाकर को जिताने के लिए प्रचार में पूरी ताकत लगा दिए। क्योकि समाजवादी पार्टी की जीत शिवपाल यादव का पार्टी में कद को फिर से बढ़ाएगी।
अंसारी परिवार की साख पर सवाल
मुख्तार अंसारी परिवार की साख भी घोसी विधानसभा उपचुनाव मे दांव पर लगी है। मुस्लिम वोटों को सपा के पक्ष में कराने का जिम्मा अंसारी बंधुओं के ऊपर ही था।चूंकि मुख्तार अंसारी जेल में होने पर भी घोसी में उनके सियासी प्रभाव को कम नही माना जाता है। इसलिये पिता-पुत्र के जेल में होने पर उनके भतीजे मन्नु अंसारी ने घोसी में प्रचार की कमान संभाल रखी थी।