- घोसी की जनता ने ‘दारा को नकारा’!
बुशरा असलम/ लखनऊ। घोसी में आखिर वही हुआ जिसकी आशंका काफी पहले से लगाई जा रही थी। दलबदलू दारा सिंह को घोसी की जनता ने सिरे से नकार दिया और समाजवादी साइकिल पर सवार सुधाकर सिंह को विधानसभा भेज दिया। ना राजभर काम आए, ना संजय निषाद के दावे। अपना दल का सिक्का भी खोटा निकला। 2024 से पहले नाक का सवाल बने इस उपचुनाव से जहां सपा को संजीवनी मिली है तो वहीं बीजेपी को सबक…कि दल बदलने वाले और क्षेत्रीय क्षत्रपों से सावधान रहने की जरूरत है। सवाल उठता है कि क्या राजभर और संजय निषाद पर जरूरत से ज्यादा भरोसा घोसी में बीजेपी को ले डूबा।
जिन क्षेत्रीय सूरमाओं के भरोसे बीजेपी ने घोसी फतह का सपना देखा था वो सूरमा काम नहीं आए और नतीजा वहीं आया जिसकी आशंका थी। बार बार दल बदलने में माहिर हो चुके दारा सिंह चौहान को टिकट देने का विरोध पार्टी की लोकल यूनिट ने भी किया था लेकिन राजभर और संजय निषाद के भरोसे दारा सिंह चौहान को उतार दिया गया। चुनाव के दौरान भी दारा सिंह का काफी जगह विरोध हुआ। बावजूद इसके पार्टी आलाकमान शायद घोसी की जनता की नब्ज नहीं भांप पाया नतीजा सामने है।
अब सवाल उठता है कि आखिर इन नतीजों के बाद राजभर और संजय निषाद का सियासी भविष्य क्या होगा। क्या अब गठबन्धन में उन्हें इतना वजन मिलेगा जितने के हकदार ये दोनों नेता खुद को बताते हैं। क्या योगी कैबिनेट में राजभर को जगह मिल पाएगी। क्या इस नतीजे के बाद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अब क्षेत्रीय सूरमाओं को ज्यादा महत्व दे पाएगा। ये तमाम सवाल इसलिए क्योंकि घोसी का जातीय गणित देखें तो दारा सिंह चौहान के लिए मुफीद था।
घोसी विधानसभा में 35 से 40 हजार राजभर वोटर हैं जबकि 20 से 25 हजार की संख्या निषाद वोटरों की है। खुद दारा सिंह जिस लोनिया वर्ग से आते हैं उनकी भी तादात 35 से 40 हजार के आसपास है इसके अलावा भूमिहार 45 हजार से ज्यादा हैं।
अगर मान भी लें कि मुस्लिम और यादव समीकरण यहां सिर चढ़कर बोला है फिर भी जितनी बड़ी हार दारा सिंह को मिली है वो गले उतरने लायक नहीं है। क्योंकि राजभर, निषाद, लोनिया और सवर्ण को मिलाकर जीतने भर के वोट दारा सिंह को मिल सकते थे जो कि बीजेपी के परम्परागत वोटर माने जाते हैं। यानी साफ है कि ना तो राजभर अपने वोटरों को सहेज पाए, ना संजय निषाद अपने वोटरों को। फिर ऐसे में 2024 में इनका भविष्य क्या होगा।
क्या घोसी की हार का असर 2024 के टिकट बंटवारे में दिखेगा? क्या राजभर और संजय निषाद को सीट शेयरिंग में उतनी सीटें मिलेंगी जितना मांग रहे हैं? क्या घोसी की हार के बाद इन दोनों नेताओं का नैतिक बल कमजोर नहीं होगा ? क्या ओपी राजभर का मंत्री बनने का सपना पूरा हो पाएगा ? क्या घोसी ने दोनों नेताओं को उनकी सियासी हैसियत बता दी है ? और क्या घोसी की जनता ने दलबदलू नेताओं को कड़ा संदेश दिया है ?
जाहिर है घोसी के नतीजों में एक साथ कई संदेश हैं। जिनका असर 2024 के चुनावों पर भी दिखेगा। ये और बात है कि उपचुनाव के नतीजों से देश का चुनाव प्रभावित नहीं होता है ये कई बार सामने आ चुका है। लेकिन हां बदलेगा तो एनडीए गठबन्धन का सीट शेयरिंग का गणित। जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित राजभर और संजय निषाद ही होंगे। क्योंकि घोसी इन दोनों के लिए लिटमस टेस्ट था जिसमें दोनों फेल हो चुके हैं।