नई दिल्ली। विभूतिवान पुरुष किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य सम्पदा होते हैं। उनसे समागम किसी पूजा-उपासना से कम नहीं होता। आज जब राष्ट्र ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर औद्यानिकी जगत के प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ.आर.के.पाठक इन्दिरानगर-लखनऊ स्थित भाग्योदय कार्यालय पधारे, तब हम यही चिन्तन कर रहे थे। उनके साथ बहुआयामी व्यावहारिक ज्ञान व अनुभव के धनी लोकसेवी श्री प्रदीप दीक्षित का प्रज्ञाकुंज पधारना हृदयस्पर्शी था।
भारत सरकार में ICAR के लखनऊ स्थित केन्द्रीय उपोष्ण अनुसंधान संस्थान के यशस्वी निदेशक के पद से सेवानिवृत्त डॉ. राम कृपाल जी पाठक उ.प्र. के उद्यान निदेशक के अलावा विश्व बैंक की बहुमुखी परियोजना UP DASP के राज्य तकनीकी प्रमुख भी रहे। मूलतः वे आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (कुमारगंज-अयोध्या) के उद्यान प्रोफेसर हैं, जहां उन्होंने विभागाध्यक्ष और डीन जैसे पदों को भी सुशोभित किया। उन्हें भारत में सबसे कम आयु में प्रोफेसर बनने का गौरव भी हासिल है। रिटायर होने के उपरान्त वे केन्द्रीय कृषि मन्त्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। उनकी रुचि सदा शोध व शिक्षा पर रही, उन्होंने राज्य व केन्द्र से ‘यूनिवर्सिटी वाईस चांसलर’ जैसे उच्च पद के स्वत: ऑफर आने पर भी उन्हें स्वीकार नहीं किया।
डॉ.पाठक अब जैविक खेती के विविध पक्षों के अलावा महाराष्ट्र मूल के महान वैरागी सन्त पूज्यश्रेष्ठ श्री गजानन महाराज के शिष्य कीर्तिशेष वसन्त परांजपे द्वारा निर्देशित अग्निहोत्र विज्ञान पर प्रभावी कार्य कर रहे हैं। यह काम दुनिया के तीन दर्जन से अधिक देशों में विस्तार ले चुका है, जिसमें हजारों की संख्या में वैज्ञानिक व उनके सक्रिय अनुयायी सहयोगी बने हैं। भारी संख्या में ईसाई भाई-बहिनें इस कार्य में बड़ी निष्ठा के साथ संलग्न हैं।
श्री पाठक जी बताते हैं कि देश की खेती को रसायन के जहर से मुक्ति दिलाने की प्रेरणा मुझे गुरुदेव आचार्य श्रीराम शर्मा ने स्वप्न में आकर तब दी थी जब मैं कुमारगंज कृषि विश्वविद्यालय में सेवारत था तथा गुरुदेव उन दिनों काया में थे। उसके बाद मैं उनके विचार क्रान्ति अभियान से जुड़ गया था और भारत में रासायनिक खेती के चरम वाली कालावधि में मैं ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर की पुरजोर वकालत उच्च वैज्ञानिक समुदाय के बीच करने लगा था। मित्रों को बताना चाहूंगा कि मेरी लखनऊ सेवा के दौरान उनके साथ अनेक प्रेरणादायी कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के विभिन्न अंचलों में सम्पन्न हुए थे। हरिद्वार जाने के बाद भी हमारा-उनका सहगमन निरन्तर जारी रहा। विगत कुछ वर्षों में वह मुम्बई में अधिक रहे।