पौधों का दान ही महादान-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

  • सोमवती अमावस्या पर स्नान, वृक्ष दान और ध्यान का विशेष महत्व

ऋषिकेश। महापर्व कुम्भ के पावन अवसर पर आज सोमवती अमावस्या के शाही स्नान तिथि पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और विख्यात श्री राम कथाकार संत श्री मुरलीधर जी ने प्रातःकाल परमार्थ गंगा तट पर दिव्य वेद मंत्रों के साथ स्नान कर माँ गंगा और भगवान सूर्य का पूजन किया।
आज के इस पावन अवसर पर सोमवती अमावस्या की शुभकामनायें देते हुये कहा कि सनातन धर्म में सोमवती अमावस्या का बड़ा महत्व है। अमावस्या तिथि के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं। जहां सूर्य आग्नेय तत्व को दर्शाता है तो वहीं चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। सूर्य के प्रभाव में आकर चंद्रमा का प्रभाव शून्य हो जाता है इसलिए मन को एकाग्रचित करने, श्रेष्ठ कर्म, और आध्यात्मिक चितंन के लिये यह उत्तम समय है। सोमवार के दिन अमावस्या की तिथि पड़ने पर पवित्र नदियों और तीर्थो में स्नान का फल कई गुणा अधिक हो जाता है तथा अक्षय फल देने वाली होती है सोमवती अमावस्या।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार आज के दिन पीपल के वृ़क्ष का पूजन, परिक्रमा और जल का अर्पण करने से अक्षय फल की प्राप्त होती है, सौभाग्य बढ़ता है एवं पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्’ अर्थात सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष मैं हूँ इसलिए सनातन धर्म में पीपल को देव वृक्ष; अश्वत्थ वृक्ष कहा गया है इसलिये इसके रोपण और संरक्षण का कार्य हम सबको करना चाहिये। आईये संकल्प ले कि जीवन में कम से कम एक देव वृक्ष पीपल का रोपण और संरक्षण अवश्य करें। सर्वे भवन्तु सुखिनः भाव के साथ एक डुबकी लगायें।
स्वामी जी ने कहा कि जहां जिसको सौभाग्य मिले माँ गंगा में डुबकी लगाए; स्नान करें साथ ही अपने भीतर भी डुबकी लगायें, जब भीतर डुबकी लगाएँ तो खुद को तलाशें खुद को तराशें। कुंभ पर्व केवल सागर मंथन की यात्रा नहीं बल्कि सागर मंथन से स्वयं के मंथन की यात्रा है, यह केवल अमृत मंथन की यात्रा नहीं बल्कि अमृत मंथन से आत्ममंथन की यात्रा है इसलिये स्नान करते हुये ध्यान रखें कि मेरे भीतर कुछ घट रहा है, मेरे भीतर कुछ परिवर्तन हो रहा है। भीतर का स्नान भी हो रहा है। स्नान से तन की शुद्धि होती है, ध्यान से मन की शुद्धि होती है दान से धन की शुद्धि होती है और समर्पण से बुद्धि की शुद्धि होती है। आत्म शुद्धि और आत्म परिवर्तन सबसे बड़ा परिवर्तन है इसलिये आइये स्वयं की यात्रा पर उतरें, जब गंगा में डुबकी लगायें तो भीतर भी एक डुबकी लगे तो सचमुच सोमवती अमवस्या का स्नान सफल होगा।

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