हरिद्वार। महाकुम्भ 2021 के अंतर्गत श्री हरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार के सारस्वत परिसर में स्थित “मृत्युंजयमंडपम्” में पूज्य “आचार्यश्री” जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज के पावन सान्निध्य में श्रीमद् माध्वगौडेश्वर जगद्गुरु श्रीपुण्डरीक गोस्वामी जी महराज के श्रीमुख से ‘श्रीवाल्मीकि रामायण कथा’ का ‘सप्तम दिवस’ संपन्न हुआ।
आज के कथा प्रसंग को आरम्भ करते हुए पूज्य श्रीपुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज कहते हैं कि जब श्रीराम को खबर लगी कि कल प्रातः उन्हें अयोध्या का राजा बनाया जाना है तो उन्होंने सर्वप्रथम इसकी सूचना माता जानकी को दी, संभवतः यदि महाराज दशरथ भी सीधे कैकेयी को राम के युवराज बनाने के विषय में सूचित करते तो बात न बिगड़ती। सम्बन्धों की स्थिरता के लिए गृहस्थियों के मध्य संबंध के साथ-साथ संवाद भी आवश्यक हैं। क्योंकि, संवाद बड़े से बड़े विवाद को समाप्त कर देता है, इस संदर्भ पूज्य पुण्डरीक जी गीता का दृष्टान्त देते हुए इसे जीव और ब्रह्म के मध्य संवाद की संज्ञा देते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के व्यक्तित्व की विराटता का वर्णन करते हुए कैकेयी के शब्दों में पूज्य श्रीपुण्डरीक जी कहते हैं कि राम बड़े इसलिए हैं, क्योंकि वो धर्मज्ञ हैं, श्रेष्ठ हैं। वो केवल बोलना ही नही अपितु दीन-दुखियों की पुकार सुनना भी जानते हैं। भगवान राम के राज्याभिषेक के समय कैकेयी और मंथरा की भूमिका का विवेचन करते हुए पूज्य श्रीपुण्डरीक जी महाराज कहते हैं कि जब श्रीराम का राज्याभिषेक होना था तो सभी देवता प्रकट होकर माता कैकयी से प्रार्थना करने लगे कि प्रभु श्रीराम राजा बनने के लिए नहीं, अपितु हम सबका कल्याण करने के लिए इस धराधाम पर आएं हैं, इसलिए आप लोक-कल्याण के लिए यह अपयश लेकर हमारा कार्य सिद्ध कीजिए।
“विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ..!”
पूज्य श्रीपुण्डरीक जी कहते हैं कि भगवान श्रीराम के वनगमन के समय माता कौशल्या उनको आदेशित करते हुए कहती हैं कि गृहणी का रहना ही ‘गृह’ है। तू वन जाएगा तो वन में रहेगा, सीता साथ जाएगी तो वन को भी घर बना देगी। भगवन्नाम संकीर्तन के साथ आज की कथा पूर्ण हुई।
आज के कथा श्रवण हेतु पूजनीया महामण्डलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि जी, महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी अपूर्वानन्द गिरि जी महाराज, आदरणीय श्री विवेक जी ठाकुर, संस्था के न्यासीगण सहित बड़ी संख्या में सन्त-साधक एवं श्रद्धालु गण उपस्थित रहे।