कार्तिक शुक्लपक्ष प्रबोधिनी (देवउठनी) एकादशी का माहात्म्य।

आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी।

इस वर्ष प्रबोधिनी एकादशी व्रत 04 नवम्बर को है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। ‘प्रबोधिनी’ का माहात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। समुद्र से लेकर सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं, वे सभी अपने माहात्म्य की तभी तक गर्जना करते हैं, जबतक कि कार्तिक मास में भगवान् विष्णु की ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती। ‘प्रबोधिनी एकादशी को एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय का फल पा लेता है। जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असम्भव है तथा जिसे त्रिलोकी में किसी भी नहीं देखा है; ऐसी वस्तु के लिये भी याचना करने पर ‘प्रबोधिनी एकादशी उसे देती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को ‘हरिबोधिनी’ एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरुपर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी ‘प्रबोधिनी’ एक ही उपवास से भस्म कर देती है। पहले के हजारों जन्मों में जो पाप किये गये हैं, उन्हें ‘प्रबोधिनी’ की रात्रि का जागरण रुई को ढेरी के समान भस्म कर डालता है। जो लोग ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का मन से ध्यान करते तथा जो इसके व्रत का अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुःखों से छुटकारा पाकर भगवान् विष्णु के परमधाम को चले जाते हैं। अश्वमेध आदि यज्ञ से भी जिस फल की प्राप्ति कठिन है, वह ‘प्रबोधिनी एकादशी को जागरण करने से अनायास ही मिल जाता है। सम्पूर्ण तीर्थों में नहाकर सुवर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह श्रीहरि के निमित्त जागरण करने मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्यों के लिये मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-सम्पत्तिमात्र भी क्षणभंगुर है; ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिये। तीनों लोकों में जो कोई भी तीर्थ सम्भव हैं, वे सब ‘प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करनेवाले मनुष्य को मौजूद रहते हैं। कार्तिकबकी ‘हरिबोधिनी एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करनेवाली है। जो ‘प्रबोधिनी’ को उपासना करता है, वहीं ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और जितेन्द्रिय है तथा उसो को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

‘प्रबोधिनी एकादशी को भगवान् विष्णु के उद्देश्य से मानव जो स्नान, दान, जप और होम करता है, वह सब अक्षय होता है। जो मनुष्य उस तिथि को उपवास करके भगवान् माधव को भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मों के पापों से छुटकारा पा जाते हैं।इस व्रतके द्वारा जनार्दन को मनुष्य सम्पूर्ण दिशाओं को अपने जो करता हुआ हरि के वैकुष्ठधाम को जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को व्रत होने पर भगवान् बचपन, जवानी और बुढ़ापे में किये हुए सौ जन्मों के पाप को, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अत: सर्वथा प्रयत्न करके सम्पूर्ण मनोयोग से देवाधिदेव जनार्दन की उपासना करनी चाहिये। जो भगवान् विष्णु के भजन में तत्पर होकर कार्तिक में पराये अन्न का त्याग करता है, वह चान्द्रायण व्रत का फल पाता है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय तरीके से कार्तिक मास व्यतीत करता है वह अपने सम्पूर्ण पापों को जला डालता और हजार यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के कहने सुनने से भगवान् मधुसूदन को जैसा सन्तोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान अथवा जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभकर्म परायण पुरुष कार्तिक मास में एक या आधा श्लोक भी भगवान् विष्णु की कथा बाँचते हैं, उन्हें सौ गोदान का फल मिलता है। कार्तिक में भगवान् के शास्त्र का स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिये। जो कार्तिक में कल्याण प्राप्ति के लोभ से श्रीहरि को कथा का प्रबन्ध करता है, वह अपनी सौ पीढियों को तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिक मास में भगवान् विष्णु को कथा सुनता है, उसे सौ गोदानका फल मिलता है। जो ‘प्रबोधिनी एकादशी के दिन श्रीविष्णु को कथा श्रवण करता है, उसे द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। जो भगवान् विष्णु की कथा सुनकर शक्ति के अनुसार कथा वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य कार्तिक मास में भगवत्संबन्धी गीत और शास्त्रविनोद के द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं दे है। जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान के समक्ष गान नृत्य वाद्य और श्रीविष्णुको कथा करता है, वह लोकों के ऊपर विराजमान होता है।कार्तिक की ‘प्रबोधिनी’ एकादशी के दिन बहुत-से फल-फूल, कपूर, अरगजा और कुंकुम के द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिये। एकादशी आनेपर धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिये; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से असंख्य पुण्यकी प्राप्ति होती है। ‘प्रबोधिनी’ को जागरण के समय शंख में जल लेकर फल तथा नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रीजनार्दन को अर्घ्य देना चाहिये। सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने और सब प्रकारके दान देने से जो फल मिलता है, वही ‘प्रबोधिनी’ एकादशी को अर्घ्य देने से करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। अर्घ्यके पश्चात् भोजन आच्छादन और दक्षिणा आदि के द्वारा भगवान् विष्णु की प्रसन्नता के लिये गुरु की पूजा करनी चाहिये। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवत की कथा सुनता अथवा पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिलादान का फल मिलता है। कार्तिक में जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकी के एक पत्ते से पूजित होने पर भगवान् गरुड़ध्वज एक हजार वर्ष तक अत्यन्त तृप्त रहते हैं। जो अगस्त के फूल से भगवान् जनार्दन की पूजा करता है, उसके दर्शनमात्र से नरककी आग बुझ जाती है। जो कार्तिक में भगवान् जनार्दन को तुलसी के पत्र और पुष्प अर्पण करते हैं, उनका जन्मभर का किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है। जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्र युग तक पुण्य का विस्तार करते हैं। सब प्रकार के फूलों और पत्तोंको चढ़ाने से जो फल होता है, वह कार्तिक मास में तुलसी के एक पत्तेसे मिल जाता है। कार्तिक आया देख प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसी के कोमल पत्तों से महाविष्णु श्रीजनार्दन का पूजन करना चाहिये। सौ यज्ञों द्वारा देवताओं का यजन करने और अनेक प्रकारके दान देने से जो पुण्य होता है, वह कार्तिक में तुलसीदल मात्र से केशव की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है।

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