परमार्थ निकेतन में महिला अधिकारिता एवं बाल विकास विभाग, देहरादून द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का समापन परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डाॅ गीता खन्ना जी, डॉ. अखिलेश कुमार मिश्रा जी, नोडल अधिकारी, राज्य परियोजना निदेशक, महिला अधिकारिता एवं बाल विकास विभाग और अन्य विशिष्ट अतिथियों की पावन उपस्थिति में हुआ। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन का वन स्टाप सेन्टर में कार्यरत महिलाओं के क्षमतावर्द्धन हेतु किया गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से आये प्रतिभागियों को फूलदेई पर्व की शुभकामनायें देते हुये कहा कि यह पर्व नई उमंग, उल्लास और नई उम्मीद का संदेश देता है। इस समय उत्तराखंड के पहाड़ों में बसंत अपने यौवन पर होता है और उसी का प्रतीक है फूलदेई पर्व। फूलों का यह पर्व उत्तराखंड की नैसर्गिक समृद्धि का द्योतक है और यह एक अनूठा लोकपर्व भी है। यह पर्व हम सभी को प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करने की प्रेरणा देता है।
स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखंड में वन्यजीव पर्यटन, प्राकृतिक व सांस्कृतिक विरासत संरक्षण पर्यटन, पर्यावरण पर्यटन, धार्मिक, आध्यात्मिक और तीर्थयात्रा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये अपनी संस्कृति और प्रकृति को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है।
नोडल अधिकारी, राज्य परियोजना निदेशक, महिला अधिकारिता एवं बाल विकास विभाग, डॉ. अखिलेश कुमार मिश्रा जी ने कहा कि वन स्टाप सेंटर की महिलाओं को प्रशिक्षण के साथ तीन दिनों तक दिव्य वातावरण में रहने और आध्यात्मिक गतिविधियों में सहभाग करने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे विश्वास है आप सभी अपने-अपने क्षेत्र में जाकर नई ऊर्जा के साथ पहाड़ पर रहने वालों की पहाड जैसी परेशानियों को हल करने में मदद के लिये हाथ अवश्य आगे बढ़ायेगी।
फूल देई उत्तराखंड राज्य में मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है जो वसंत ऋतु के आगमन का संदेश देता है। इस अवसर पर प्रदेशवासी अपने घरों को फूलों से सजाते हैं और समृद्धि की कामना करते हुए घरों के दरवाजे पर फूलों की बौछार करते हैं। यह उत्तराखंड का एक सांस्कृतिक उत्सव भी है।
महिला अधिकारिता एवं बाल विकास विभाग, देहरादून द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का समापन
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उत्तराखंड वासियों को फूलदेई पर्व की शुभकामनायें देते हुये कहा कि भारत की संस्कृति पर्यावरण संरक्षण की संस्कृति रही है। पौराणिक काल से ही भारत में पर्यावरण संरक्षण हेतु पर्वों और लोक पर्वों का आयोजन किया जाता है। फूलदेई फेस्टिवल इसका जीवंत उदहारण है।