पवन उपाध्याय।
दोहरीघाट। रामघाट सरयू घाट पर रविवार को व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया। इस दौरान घाट पर व्रतियों की भारी भीड़ रही।
रामघाट सरयू घाट में रविवार को व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया। ‘काचहि बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाए, दर्शन दीन्हीं ना अपन ये छठी मइया’ आदि गीत गाकर महिलाओं द्वारा सूर्य की उपासना की गई। रविवार को रामघाट के सरयू नदी छठ घाट पर महिला श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही। इसके साथ ही सूर्य की उपासना की कहानी महिलाएं सुना रही थीं। इस दौरान महिलाओं ने दीपदान भी किया। दीपों की रोशनी से पूरा सरयू घाट जगमगा उठा। छठ मईया के गीतों से पूरा घाट भक्तिमय हो गया। श्रद्धालु विधि-विधान से पूजा पाठ में जुटे रहें। सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती उपवास खोलेंगे और प्रसाद ग्रहण करेंगे। छठ व्रत रखने वाली महिलाएं रविवार की सुबह से ही तैयारी में लग गईं थीं। विविध प्रकार के पकवान बनाए गए। इसे एक बड़े पात्र में रखा गया। सुबह से ही निर्जल रहकर स्नानादि और श्रृंगार कर महिलाएं परिवार के लोगों के साथ छठ घाटों पर पहुंची। दीप प्रज्वलित कर छठ मईया की पूजा की गई। इसके बाद एक दीप गंगा मईया और एक दीप भगवान भास्कर को अर्पित किया गया। यह सब करने के बाद महिलाओं ने सरयू नदी में कमर भर पानी में खड़ी होकर भगवान भास्कर के डूबने पर उन्हें अर्घ्य दिया। बच्चों ने भी छठ मैय्या की पूजा की। बता दें कि छठ पूरी दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व जिसमें उगते सूरज के साथ डूबते सूरज की भी वंदना की जाती है, जल अर्पित किया जाता है। प्रकृति की वंदना का पर्व छठ यूं तो भारत के पूर्वाचल इलाके में ही मनाया जाता था लेकिन ग्लोबल होती दुनिया और संस्कृतियों के संगम के दौर में छठ अब महापर्व बन चुका है।
चार दिनों के इस महापर्व में छठ व्रती 36 घटे का कठिन उपवास करते हैं। पर्व के दौरान मन और शरीर की शुद्धता की बड़ी अहमियत है। मान्यता है कि छठी मइया की बच्चों पर विशेष कृपा होती है। इसलिए संतान की सलामती का आशीर्वाद पाने के लिए भी इस व्रत की बड़ी अहमियत है। मन्नत पूरा होने पर महिलाएं छठी मईया की कोसी भरतीं हैं। हर साल की तरह इस साल भी तमाम महिलाओं ने कोसी भरा। इसमें उनके परिवार, रिश्तेदार अन्य तमाम लोग शामिल हुए। छठ घाटों को जगमग करने के लिए कई दिनों से तैयारिया चल रही थी। दोहरीघाट के सरयू घाट पर लाइट की व्यवस्था की गई थी। सरयू के घाट के चारों ओर लाइट जल रही थी। इससे व्रती महिलाओं और अन्य लोगों को कोई दिक्कत नहीं हुई। वहीं भगवान भास्कर के अस्त होते ही बच्चों ने पटाखे जलाएं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रीति तो कई व्रतों और त्योहारों में है लेकिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा आमतौर पर केवल छठ व्रत में है। सुबह, दोपहर और शाम तीन समय सूर्य देव विशेष रूप से प्रभावी होते हैं। सुबह के वक्त सूर्य की आराधना से सेहत बेहतर होती है। दोपहर में सूर्य की आराधना से नाम और यश बढ़ता है। शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है। शाम के समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं इसलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देना तुरंत लाभ देता है। जो डूबते सूर्य की उपासना करते हैं, वो उगते सूर्य की उपासना भी जरूर करें। ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है।
दोहरीघाट क्षेत्र के गोंठा रामशाला घाट, डीह बाबा घाट, फरसरा खुर्द, फरसरा बुजुर्ग, पोखरा कुसुम्हा, नई बाजार, कोरौली, तारनपुर, कुरंगा और विभिन्न नहर घाट किनारे, तालाब, पोखर व जलकुंडों में बास से बने सूप में नारियल, फल व अन्य पूजन सामग्री लिए पानी में खड़े होकर व्रतियों ने प्रकृति के ऊर्जा के सबसे स्त्रोत सूर्य की उपासना की। व्रतियों ने डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य दिया और सूर्य देव से मन्नत मागी। व्रतियों ने ‘काच ही बास के बहंगिया.,’ ‘केलवा जे फरेला घवध से.,’ ‘ऊगो हो सूरज देव,’ ‘भईले अरघा के बेर.’ आदि गीत गाए। एक स्वर में गाये जाने वाले इन गीतों ने माहौल को भक्तिपूर्ण बना दिया। विभिन्न घाटों पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं वहीं कई व्रती घाट पर ही रूक जाते हैं। इसके बाद रात में पाच गन्नों से घेर कर मिट्टी के दीये जला कर कोसी की पूजा भी की गई।
सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद
छठ पर्व शांति से और बिना किसी अप्रिय घटना के संपन्न हो, इसके लिए प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किए हैं। दोहरीघाट के थानाध्यक्ष हरिशंकर सिंह ने बताया कि सरयू घाट, गोंठा रामशाला मंदिर छठ, कुसुम्हा नहर छठ घाट, नई बाजार छठ घाट, सती घाट व तारनपुर घाट समेत आदि नहर तथा अन्य घाटों पर पुलिस बलों की तैनाती की गई हैं। थानाध्यक्ष हरिशंकर सिंह दोहरीघाट ब्लाक के घाटों पर भ्रमण करते रहे। उदयगामी सूर्य को अर्घ्य सोमवार को अर्घ्य देने के साथ महापर्व का समापन होगा। इसके पहले ब्रह्म मुहूर्त बेला में व्रती व घर वाले सरयू नदी के घाट पर डाला लेकर पहुंचेंगे और सूर्य को अर्घ्य देंगे। इसके बाद व्रती पारण करेंगी, फिर प्रसाद का वितरण होगा। इसके साथ ही चार दिनों का यह महा पर्व पूरा हो जाएगा।