ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आज भगवान श्री राम का प्राकट्य उत्सव मनाया गया। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और आचार्यो ने श्रद्धापूर्वक गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित राम स्तुति ‘श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन’ का गायन किया तथा नौ दिनों से चल रहे रामचरित मानस पारायण पाठ का समापन और नवरात्रि हवन कर रामनवमी उत्सव मनाया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रद्धा, शौर्य और आस्था का महासंगम राम नवमी पर्व की देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि आज चैत्र नवमी के पावन अवसर पर भगवान श्रीराम का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है। राम नवमी का उत्सव भक्ति और शक्ति का महाउत्सव है। भगवान राम का संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को समर्पित रहा है। उनके जीवन का लक्ष्य था समाज में सत्य और न्याय को स्थापित करना, इसके लिए उन्होंने जो मूल्य चुने और जो आदर्श स्थापित किये वे अद्भुत हैं। पिता की आज्ञा का हृदय से पालन, शबरी और केवट के साथ सामाजिक समानता का व्यवहार करना तथा समुद्र पार करने के लिये वानरों, भालुओं से पुल बनवाया ताकि सभी को एकता की शक्ति का परिचय हो, ये सब जीवन के श्रेष्ठतम आदर्श हैं जो आज के युग में भी प्रासंगिक हंै।
स्वामी जी ने कहा कि राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भये गये सब सोका।।’- केवल अयोध्या ही नहीं, तीनों लोकों में हर्ष छा गया, शोक-सन्ताप सदा-सदा के लिए मिट गये, ऐसा था भगवान श्री राम का व्यक्तित्व और उनका राज्य। ‘बरनाश्रम निज निज धरम, निरत वेदपथ लोग।’ चारों वर्णों के लोग अपनी अवस्था के अनुसार आचरण करते थे अर्थात् अनासक्त भाव से अपने कार्यो में तल्लीन रहते थे। अद्भुत महिमा है प्रभु श्री राम की। धन्य हैं हम भारतवासी हमारे आराध्य भगवान श्री राम हंैैै।
स्वामी जी ने कहा कि समाज के नवनिर्माण में महाग्रंथ रामायण का महत्वपूर्ण योगदान है। हितेन सह इति सष्टिमूह तस्याभावः साहित्यम्। यह वाक्य संस्कृत का एक प्रसिद्ध सूत्र-वाक्य है जिसका अर्थ है साहित्य का मूल तत्त्व सबका हितसाधन है। महाग्रंथ रामायण अनकों वर्षों से समाज का मार्गदर्शन कर रही है।
महाग्रंथ रामायण के माध्यम से हमें अतीत से प्रेरणा लेना चाहिये, यह ग्रंथ वर्तमान को चित्रित करने के साथ भविष्य का मार्गदर्शन भी करता है इसलिये तो कहा गया है कि साहित्य, समाज का दर्पण होता है।