कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी से पूर्णिमा तक भीष्मपंचक व्रत।।

आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी।

यह व्रत कार्तिक के अन्तिम पाँच दिनों में किया जाता है। इसे भीष्म जी ने भगवान् वासुदेव से प्राप्त किया था, इसलिये यह व्रत भीष्मपंचक नाम से प्रसिद्ध है। भगवान् केशव के सिवा दूसरा कौन ऐसा है, जो इस व्रत के गुणों का यथावत् वर्णन कर सके। वसिष्ठ, भृगु और गर्ग आदि मुनीश्वरों ने सत्ययुग के आदि में कार्तिक के शुक्लपक्ष में इस पुरातन धर्म का अनुष्ठान किया था। राजा अम्बरीष ने भी त्रेता आदि युगों में इस व्रत का पालन किया था। ब्राह्मणों ने ब्रह्मचर्यपालन, जप तथा हवन कर्म आदि के द्वारा और क्षत्रियों एवं वैश्यों ने सत्य- शौच आदि के पालनपूर्वक इस व्रत का अनुष्ठान किया है। सत्यहीन मूढ़ मनुष्यों के लिये इस व्रत का अनुष्ठान असम्भव है। जो इस व्रत को पूर्ण कर लेता है, उसने मानो सब कुछ कर लिया। कार्तिक शुक्लपक्ष में एकादशी को विधिपूर्वक स्नान करके पाँच दिनों का व्रत ग्रहण करे। व्रती पुरुष प्रातः स्नान के बाद मध्याह्न के समय भी नदी, झरने या पोखरे पर जाकर शरीर में गोबर लगाकर विशेषरूप से स्नान करें। फिर चावल, जौ और तिलों के द्वारा क्रमशः देवताओं, ऋषियों और पितरों का तर्पण करे। मौनभाव से स्नान करके धुले हुए वस्त्र पहन दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करे। ब्राह्मण को पंचरत्न दान दे। लक्ष्मी सहित भगवान् विष्णु का प्रतिदिन पूजन करे। इस पंचकव्रत के अनुष्ठान से मनुष्य वर्षभर के सम्पूर्ण व्रतोंका फल प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य निम्नांकित मन्त्रों से भीष्म को जलदान देता और अर्घ्य के द्वारा उनका पूजन (सत्कार) करता है, वह मोक्ष का भागी होता है। मन्त्र इस प्रकार है-
‘वैयाघ्रपद्यगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
अनपत्याय भीष्माय उदकं भीष्मवर्मणे ॥
‘जिनका गोत्र वैयाघ्रपद्य और प्रवर सांकृत्य है, उन सन्तान रहित राजर्षि भीष्म के लिये यह जल समर्पित है जो वसुओंके अवतार तथा राजा शन्तनु के पुत्र हैं, उन आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य दे रहा हूँ।’ तत्पश्चात् सब पाप का हरण करने वाले श्रीहरि का पूजन करे। उसके बाद प्रयत्नपूर्वक भीष्म पंचक व्रत का पालन करना चहिये। भगवान्‌ को भक्तिपूर्वक जल से स्नान कराये। फिर मधु, दूध, घी, पंचगव्य, गन्ध और चन्दन मिश्रित जल से उनका अभिषेक करे। तदनन्तर सुगन्धित चन्दन और केशर में कपूर और खस मिलाकर भगवान् के श्रीविग्रह पर उसका लेप करे। फिर गन्ध और धूप के साथ सुन्दर फूलों से श्रीहरि की पूजा करे तथा उनकी प्रसन्नता के लिये भक्तिपूर्वक घी मिलाया हुआ गूगल जलाये। लगातार पाँच दिनों तक भगवान्‌ के समीप दिन-रात दीपक जलाये रखे। देवाधिदेव श्रीविष्णुको नैवेद्यके रूप में उत्तम अन्न निवेदन करे। इस प्रकार भगवान् का स्मरण और उन्हें प्रणाम करके उनकी अर्चना करे। फिर ‘ॐ नमो वासुदेवाय’ इस मन्त्र का एक सौ आठ बार जप करे तथा उस षडक्षर – मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ पद जोड़कर उसके उच्चारणपूर्वक घृतमिश्रित तिल, चावल और जौ आदिसे अग्नि में हवन करे। सायंकाल में सन्ध्योपासना करके भगवान् गरुड़ध्वज को प्रणाम करे और पूर्ववत् षडक्षर मन्त्र का जप करके व्रत- पालनपूर्वक पृथ्वी पर शयन करे। इन सब विधियोंका पाँच दिनोंतक पालन करते रहना चाहिये ।

एकादशी को सनातन भगवान् हृषीकेश का पूजन करके थोड़ा-सा गोबर खाकर उपवास करे। फिर द्वादशी को व्रती पुरुष भूमि पर बैठकर मन्त्रोचारण के साथ गोमूत्र पान करे । त्रयोदशी को दूध पीकर रहे। चतुर्दशी को दही भोजन करे। इस प्रकार शरीर की शुद्धि के लिये चार दिनों का लंघन करके पाँचवें दिन स्नान के पश्चात् विधिपूर्वक भगवान् केशव की पूजा करे और भक्ति के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दे। पापबुद्धि का परित्याग करके बुद्धिमान् पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करे। शाकाहार से अथवा मुनियोंके अन्न (तिन्नी के चावल ) से इस प्रकार निर्वाह करते हुए मनुष्य श्रीकृष्ण के पूजन में संलग्न रहे। उसके बाद रात्रि में पहले पंचगव्य पान करके पीछे अन्न भोजन करे। इस प्रकार भलीभाँति व्रत की पूर्ति करने से मनुष्य शास्त्रोक्त फल का भागी होता है। इस भीष्मव्रत का अनुष्ठान करने से मनुष्य परमपद को प्राप्त करता है। स्त्रियों को भी अपने स्वामी की आज्ञा लेकर इस धर्मवर्धक व्रत का अनुष्ठान करना चाहिये । विधवाएँ भी मोक्ष- सुख की वृद्धि, सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति तथा पुण्य की प्राप्ति के लिये इस व्रत का पालन करें। भगवान् विष्णु के चिन्तन में लगे रहकर प्रतिदिन बलिवैश्वदेव भी करना चाहिये। यह आरोग्य और पुत्र प्रदान करनेवाला तथा महापातकों का नाश करनेवाला है। एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक का जो व्रत है, वह इस पृथ्वी पर भीष्मपंचक के नाम से विख्यात है। भोजनपरायण पुरुष के लिये इस व्रतका निषेध है। इस व्रत का पालन करने पर भगवान् विष्णु शुभ फल प्रदान करते हैं।

आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी।
प्राध्यापक: हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी। निदेशक: काशिका ज्योतिष अनुसंधान केंद्र। मो0: 9450209581/ 8840966024

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