हरिद्वार। पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – “रविश्चन्द्रो घना वृक्षा नदी गावश्च सज्जनाः एते परोपकाराय युगे दैवेन निर्मिता …”। यदि संकल्प शुभ-सकारात्मक व पारमार्थिक हो तो नियन्ता-नियति, परमात्मा-प्रकृति व सकल दैवसत्ता उसकी सिद्धि में सहायक होने लगते है। परमार्थवृत्ति व संकल्प-शुभता ही जीवन उन्नयन का मूल है ..! प्रगाढ़-कामना से ही संकल्प का जन्म होता है। तीव्र इच्छा शक्ति के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। आत्मविश्वास, दृढ़-निश्चय और शुभ संकल्प जीवन सिद्धि के लिए श्रेष्ठतम साधन है। शुभकामनाएं हमारे जीवन को शुभ बनाती हैं। शुभ सोचना और शुभ की कामना करना स्वयं को रूपांतरित करने का रसायन विज्ञान है तथा हमारी काया में रासायनिक परिवर्तन लाती है। ये उद्गार पूज्य “आचार्यश्री” जी ने हरिहर आश्रम, हरिद्वार के तत्वावधान में श्रद्धालुओं को आशीर्वचन देते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि तीव्र इच्छा शक्ति के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। किसी भी तरह की सफलता अपने ही पुरुषार्थ और परिश्रम का फल होती है। जीवन-निर्माण के प्रत्येक क्षेत्र में संकल्प शक्ति को विशिष्ट स्थान मिला है। यों तो प्रत्येक इच्छा एक तरह की संकल्प ही होती है, किन्तु फिर भी इच्छायें संकल्प की सीमा का स्पर्श नहीं कर पातीं। उनमें पूर्ति का बल नहीं होता, अतः वे निर्जीव मानी जाती हैं। वहीं इच्छायें जब बुद्धि, विचार और दृढ़ भावना द्वारा परिष्कृत हो जाती हैं तो संकल्प बन जाती हैं। ध्येय सिद्धि के लिये इच्छा की अपेक्षा संकल्प में अधिक शक्ति होती है। संकल्प उस दुर्ग के समान है, जो भयंकर प्रलोभन, दुर्बल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों से भी रक्षा करती है और सफलता के द्वार तक पहुँचाने में मदद करती है। शास्त्रकारों ने “संकल्प मूलः कामौं …” अर्थात् कामना पूर्ति का मूल-संकल्प बताया है। इसमें संदेह नहीं है कि प्रतिज्ञा, नियमाचरण तथा धार्मिक अनुष्ठानों से भी वृहत्तर शक्ति संकल्प में होती है। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा कि शुभ-संकल्प रूपी बीज ऐसे ही फलित नहीं हो जाएंगे, परिश्रम रूपी जल से इन्हें सिंचित करना पड़ेगा और संकल्प रूपी खाद डालनी पड़ेगी।उत्कृष्ट या निकृष्ट जीवन यथार्थतः मनुष्य के विचारों पर निर्भर है। कर्म हमारे विचारों के रूप हैं। जिस बात की मन में प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, वह अपनी पसन्द या दृढ़ इच्छा के कारण गहरी नींव पकड़ लेती है तथा उसी के अनुसार बाह्य जीवन का निर्माण होने लगता है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – संकल्पशक्ति ही है, जिसके बल पर वह एवरेस्ट फतह कर सकता है और अंतरिक्ष में विचरण कर सकता है। गौरतलब है कि कोई भी व्यक्ति एकनिष्ठ होकर किसी प्रयोजन को पूरा करने का संकल्प करता है तो उसे सफलता मिलती है। यदि आपका संकल्प शुभ हेतु है तो उसका साथ समूची प्रकृति देती है। संकल्प शक्ति व्यक्ति को निजी जीवन में सफलता देने के साथ दुनिया में कीर्तिमान बनाने का साहस प्रदान करती है। साहस और निश्चयात्मक विश्वास संकल्प के दो पहलू हैं, इन्हीं से मनुष्य की जीत होती है। साहस निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता है। इससे कर्म में गति बनी रहती है। निश्चयात्मक विचार प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सन्तुलन बनाये रहते हैं, इस तरह से मनुष्य अविचल भाव से अपने इच्छित कर्म पर लगा रहता है। संकल्प की शक्ति निःसंदेह बहुत अधिक है, किन्तु यह बात न भूलें कि अशुभ संकल्पों की प्रतिक्रिया व्यक्ति और समाज दोनों के लिये ही अहितकर होती है। चोरी, डकैती व्याभिचार, छल, कपट के प्रेरक अशुभ संकल्प ही होते हैं, इनसे मनुष्य का जीवन दूषित और दुःखमय बनता है। साथ ही समीपवर्ती व्यक्ति भी दुःख पाते हैं। अशुभ-विचारों की अशुभ प्रतिक्रिया को ही ध्यान में रखते हुये शास्त्रकार ने लिखा है – यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च, यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्नऋते किंचन कर्म क्रियते, तन्मेमनः शिव संकल्पमस्तु …”॥ अर्थात्, “जिस मन से अनुभव, चिन्तन तथा धैर्य धारण किया जाता है, जो इन्द्रियों में एक तरह की ज्योति है, वह मेरा मन शुभ-संकल्प वाला हो …।”