हरिद्वार। पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – “अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः। पुर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः …”।। प्रकृति हमारा पालन और पोषण करती है। अतः प्रकृति का सम्मान करें और अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें। वृक्ष धरा के प्रत्यक्ष देवता हैं ! नदियों के पुनर्जीवन का मूल वृक्ष है। वृक्ष पर्जन्यों को जन्म देता है और पर्जन्य हमें जल प्रदान करते हैं। इस प्रकार अधिकाधिक मात्रा में वृक्षारोपण द्वारा ही नदियों के अस्तित्व की रक्षा की जा सकती है ..! प्रकृति का संरक्षण स्वयं के अस्तित्व का संरक्षण है। मानव और प्रकृति के बीच विशेष संबंध रहे हैं। प्रकृति माता ने हमारा पालन-पोषण किया है। प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से रहने वाले समाज फलते-फूलते है। नदियों की प्रवाहमानता, शुचिता-सातत्य और निर्मलता-अविरलता सहेजकर रखना नितांत आवश्यक है। समस्त प्राणियों का अस्तित्व जल में ही निहित है! आदिकाल से ही नदियाँ जीवनदायिनी रही हैं। नदियाँ, प्रकृति का अभिन्न अंग हैं। नदियाँ अपने साथ वर्षा का जल एकत्र कर उसे पूरे भू-भाग मे पहुंचाने का कार्य करती है। नदियों के कई सामाजिक व आर्थिक लाभ हैं। नदियों से जीवन के लिए अति आवश्यक स्वच्छ जल प्राप्त होता है, यही कारण है कि अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं, नदियों के आसपास ही विकसित हुईं। मन्दिर व तीर्थ नदी के किनारे बसे, ज्ञान व अध्यात्म का पाठ इन्हीं नदियों की लहरों के साथ दुनिया भर में फैला। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत की सांस्कृतिक व भावात्मक एकता का सम्वेत स्वर इन नदियों से ही उभरता है। भारतीय संस्कृति में नदियाँ सदा ही जीवनदायनी की तरह पूजनीय रही हैं। इन जीवनदायनी नदियों का महत्व सभी को समझना नितान्त आवश्यक है। कोई भी देश, राज्य, गाँव, शहर बिना जल के महत्व के किसी भी प्रकार की यात्रा तय नहीं कर सकता। अतः नदियों का अति दोहन एवं उन्हें प्रदूषित न करें। नदियों की निर्मलता, अविरलता, प्रवाहमानता को सहेजकर रखना हमारा परम कर्तव्य है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हमें प्रकृति से उतना ही ग्रहण करना चाहिए, जितना की आवश्यक है। प्रकृति को पूर्णता से नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। हमारे पूर्वज इसी भावना से बिना पौधों को नुक़सान पहुंचाए तुलसी की पत्तियां पुष्प आदि तोड़ते थे। कुछ ऐसा ही संदेश वेदों में भी दिया गया है। स्वार्थपरता व आधुनिकता के चलते हमने जंगल के जंगल काट दिए। वर्तमान काल में बहुत सी नदियां अब जलाभाव में अपने आंसू बहा रही हैं। यह देश-दुनिया जब से है तब से जल एक अनिवार्य आवश्यकता रही है। अभी हमारे देखते-देखते ही घरों के आँगन, गाँव के पनघट व कस्बों के सार्वजनिक स्थानों से कुएँ गायब हो गए हैं, क्योंकि जल के साथ आदमी ने छल किया है। निर्झर जल को अपने स्वार्थ में बांध लिया है। जबकि जल तो प्रवाह का सूचक है। जिस तरह सदाबहार नदियाँ बरसाती नदी में बदलती जा रही है। एक दिन यह भी इतिहास बन जाएगी और इनके किनारे हम जिस सभ्यता का दम भरते हैं, वह किताबों में यह कहकर अपना स्थान बना लेंगी कि यहाँ भी कोई सभ्यता कभी हुआ करती थी। वर्तमान में नदियों पर अपने उद्गम पर ही विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है जो कि किसी बड़ी नदी की सहायक नदी हुआ करती थी या हैं, वो आज स्वयं के लिये संघर्ष कर रही हैं। नही तो एक दिन सरस्वती नदी की तरह सुर्खियाँ तो बटोर लेगीं ये नदियाँ, लेकिन जल नहीं बटोर सकेंगी। अतः विज्ञान और तकनीकी का प्रयोग जिस तेजी से पृथ्वी के गर्भ से जल निकालने के लिए हो रहा है, वह इस प्राकृतिक जल स्रोतों को जीवित रखने में भी होना चाहिए …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – भारत नदियों का देश है। नदियों को हम माता समान या देवी समान पूजते हैं। अनेक नदियों में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है, ऐसी मान्यता है। प्रत्येक नदी का अपना एक अलग महत्व है। नदियों का धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक अनेक महत्व हैं। देवताओं का, पितरों का, यक्ष, गन्धर्वों को तिलांजलि इन नदियों के माध्यम से दी और इनको तारा। अब प्रश्न यह है कि इन नदियों को कौन तारेगा? जब तक अपने उद्गम स्थान से विसर्जन के स्थान तक इन्हें सम्मान नहीं मिलेगा। स्वच्छ जल इन नदियों का वस्त्र है और जब तक इनके वस्त्र स्वच्छ नहीं होंगे कोई भी सभ्यता, सभ्य सभ्यता नहीं कहला सकती है। नदियों का अस्तित्व बनाये रखना कोई मजाक नहीं है। ये ना हो कि नदियों के साथ मजाक करते-करते मानव सभ्यता कब मजाक बन जाये और हमें पता ही नहीं चले। ये नदी नाले, तालाब, सब एक-दूसरे को पोषण देते हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रदूषण का तूफान इतनी तेजी से फैल रहा है कि उससे हमारे देश की नदियाँ भी अछूती नही है। तीर्थों को स्वच्छ्ता प्रदान करना ही तीर्थ सेवा है। इसलिए, हम सभी को यह संकल्प करना होगा कि हम नदियों को प्रदूषण मुक्त रखेगें और नदियों की स्वच्छता का पूरा-पूरा ध्यान रखेंगे। विश्व को पर्यावरण के क्षेत्र में एक ऐसी मिसाल की तरफ बढ़ने की आवश्यकता है जो सिर्फ सरकारी नियमों तथा कानूनों तक ही न हो, बल्कि इसमें पर्यावरण जागरुकता भी हो। इस दिशा में जो व्यक्ति और संगठन लगातार मेहनत कर रहे हैं, मैं उन्हें बधाई देना चाहूंगा, क्योंकि वे हमारे समाज में चिरस्मरणीय बदलाव के अग्रदूत बन चुके हैं। इस दिशा में उनके प्रयत्नों के लिए मैं सरकार की ओर से हर तरह की मदद का आश्वासन देता हूँ। हम सब मिलकर एक स्वच्छ पर्यावरण बनाएंगे जो मानव सशक्तिकरण की दिशा में आधारशिला होगी …।