अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है- स्वामी अवधेशानंद गिरी

हरिद्वार। पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – वही सलिलाएँ सागर तक पहुँची हैं जिन्हें तटों की मर्यादा व अनुशासन मान्य है, अन्यथा स्वैराचारयुक्त स्वच्छंद धाराएँ अस्तित्वहीन हो गयीं ! अतः जीवन में उच्चतर लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आत्मानुशासन की साकारता आरम्भिक साधन है ..! अनुशासन के द्वारा ही हम स्वयं के लिए उज्जवल भविष्य की कामना कर सकते हैं। अनुशासन व्यक्ति को अपने मन में उन सभी सकारात्मक नियमों और विनियमों का प्रशिक्षण देकर पूर्णता लाता है जो उसे समाज में एक सम्मानित व्यक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। अनुशासन से दैनिक जीवन में व्यवस्था आती है, मानवीय गुणों का विकास होता है और नियमित कार्य करने की क्षमता, प्रेरणा मिलती है। अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है। अनुशासन राष्ट्रीय जीवन का प्राण है। जो छात्र संस्कारवान नहीं, वह अनुशासनप्रिय नहीं हो सकता। अनुशासन से ही शिक्षा पूर्ण समझी जा सकती है। शिक्षा का उद्देश्य जीवन को अनुशासित बनाना है। एक आदर्श अनुशासित समाज पीढियों तक चलने वाली संस्कृति की ओर पहला कदम है। आज हमारे जीवन में अनुशासन की सख्त आवश्यकता है। अनुशासन जीवन के विकास का अनिवार्य तत्व है, जो अनुशासित नहीं होता, वह दूसरों का हित तो कर नहीं पता, स्वयं का अहित भी टाल नहीं सकता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्व है। अनुशासन से धैर्य और समझदारी का विकास होता है। समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इससे कार्य क्षमता का विकास होता है तथा व्यक्ति में नेतृत्व की शक्ति जागृत होने लगती है, अनुशासन स्वतंत्रता प्रदान करता है। अतः जो व्यक्ति अनुशासित रूप से जीते हैं, उन्हें स्वतः ही विद्या, ज्ञान एवं सफलतायें प्राप्त होती हैं …।

पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – आज विश्व में जितनी समस्याएं हैं उनका एक मात्र कारण है – मनुष्य का अनुशासनहीन जीवन। अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। विद्यालय जाकर अनुशासन की भावना का विकास होता है। अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है। अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है – “ऐसा नहीं है कि मैं अधिक बुद्धिमान हूँ। मैं केवल समस्याओं का हल ढूंढ़ने के विषय में और समय बिताता हूँ।” अनुशासन के लिए विश्वास भरी दृढ़ता की आवश्यकता है। आप को पसंद हो या ना हो उस की चिंता किये बिना यदि आप अपने चुने हुए मार्ग पर चलते रहें तो वह वास्तव में अनुशासन है। यदि आप सकारात्मक हो कर अपने मार्ग को पसंद करने की विधि जान लें तो अनुशासित रूप से जीना सहज हो जाता है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति तभी संभव है जब उसके नागरिक अनुशासित हों। यदि हम चाहते हैं कि हमारा समाज एवं राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर रहें, तो हमें अनुशासित रहना ही पड़ेगा। जब हम स्वयं अनुशासित रहेंगे, तब ही किसी दूसरे को अनुशासित रख सकेंगे। अनुशासन ही देश को महान बनाता है, प्रत्येक व्यक्ति का देश के प्रति कुछ कर्तव्य होता है, जिसका पालन उसे अवश्य करना चाहिए, क्योंकि जिस देश के नागरिक अनुशासित होते हैं, वही देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रह सकता है। आज समाज में हर क्षेत्र में अनुशासनहीनता का बोलबाला है। हमारे रग-रग में यह व्याप्त हो गया है। यही कारण है कि हम प्रगति की दौड़ में पिछड़ गए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें प्रारम्भ से ही अनुशासन का पाठ पढ़ाया था, जिसके कारण हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारा देश एक बार फिर सोने की चिड़िया कहलाये तो सबसे पहले जीवन में अनुशासन को अंगीकार करना पड़ेगा तभी हमारा समाज और राष्ट्र उन्नति और विकास के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ेगा …।

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