हरिद्वार। जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने कहा – भगवान शिव के नाम का उच्चारण करने से ही दु:खों का निवारण हो जाता है। भगवान शिव सृष्टि के प्रकट देव हैं, जो सूक्ष्म आराधना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव दया, शुभता और ज्ञान के अवतार हैं। वह चिरस्थायी आनन्द और दिव्य अमृत का स्रोत हैं। महाशिवरात्रि के पावन अवसर आप पर सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ..! “ॐ नमः शिवाय” भगवान शिव सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लायें। भगवान शिव ही सृष्टि के रचयिता और संहारक हैं। वह सही अर्थो में सम्पूर्ण देव हैं। आदि और अंत हैं। देवों के देव महादेव हैं। जितने भी देवी-देवता हैं, उनमें शिव ही संपूर्णता के प्रतीक हैं। उनका भरा-पूरा परिवार है। अपने भक्तों को सभी भौतिक सुख प्रदान करते हुए स्वयं उनसे विरक्त हैं। भक्तों की हर मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले भोलेनाथ हैं। शिव परिवार की पूजा विशेषकर गृहस्थ आश्रम में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को करनी चाहिए। महाशिवरात्रि के पावन दिवस पर यह संकल्प लेना चाहिए कि व्यसन, दुर्भावना, ईर्ष्या, द्वेष आदि का त्याग करें। साथ ही आत्म-मंथन कर अपने दुर्गुणों का भी परित्याग करें। अपने-आप में आत्म-जागृति पैदा करें, तभी सही अर्थो में हम शिवत्व को प्राप्त कर सकते हैं और हमारी पूजा, व्रत व साधना सार्थक होगी। भगवान शिव व उनका परिवार प्रसन्न हो सकता है और हम शिव-कृपा से जीवन में माधुर्य की प्राप्ति कर सकते हैं। भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है। वे कल्याण की जन्मभूमि तथा परम कल्याणमय हैं। समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही हैं। ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया शक्ति में भगवान शिव के जैसा कोई नहीं है। वे सभी के मूल कारण, रक्षक, पालक तथा नियन्ता होने के कारण ‘महेश्वर’ कहे जाते हैं। उनका आदि और अंत न होने से वे ‘अनन्त’ हैं। अतः सभी पुराणों में भगवान शिव के दिव्य और रमणीय चरित्रों का चित्रण किया गया है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – दया का अथाह सागर हैं – भगवान भोलेनाथ। वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सम्पूर्ण दोषों को क्षमा कर देते हैं तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ज्ञान, विज्ञान के साथ अपने आपको भी दे देते हैं। शिव जी के शरीर पर भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन माँ गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले भगवान शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल ही करते हैं और श्री:-संपत्ति प्रदान करते हैं। भगवान शंकर ज्ञान, वैराग्य तथा साधुता के परम आदर्श हैं। वह भयंकर रुद्ररूप हैं तो भोलेनाथ भी हैं। दुष्ट-दैत्यों के संहार में कालरूप हैं तो दीन-दुखियों की सहायता करने में दयालुता के समुद्र हैं। जिसने उन्हें प्रसन्न कर लिया उसको मनमाना वरदान मिला। उनकी दया का कोई पार नहीं है। उनका त्याग अनुपम है। अन्य सभी देवता समुद्र मंथन से निकले हुए माँ लक्ष्मी, कामधेनु, कल्पवृक्ष और अमृत ले गये, लेकिन आप अपने भाग का हलाहल पान करके संसार की रक्षा के लिए ‘नीलकण्ठ’ बन गए। भगवान शंकर एक पत्नी व्रत के अनुपम आदर्श हैं। भगवान शंकर ही संगीत और नृत्य कला के आदि आचार्य हैं। ताण्डव नृत्य करते समय इनके डमरू से सात स्वरों का प्रादुर्भाव हुआ। इनका ताण्डव ही नृत्य कला का प्रारम्भ है। महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पुरे दिन और रात विद्यमान रहता है। इस दिन शिवजी की उपासना और पूजा करने से वे अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था। श्रद्धालु इस दिन रजस और तमस को संतुलन में लाने के लिए और सत्व में बढ़ोतरी करने के लिए उपवास करते हैं। पर्यावरण वातावरण और मन के पाँच तत्वों में संतुलन लाने के लिए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप किया जाता है। वास्तव में शिवरात्रि का एक अर्थ और भी है। तीन प्रकार की समस्याओं से जो विश्राम प्रदान करे उसे शिवरात्रि कहते हैं। ये तीन बातें हैं – आदिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक। रात्रि का अर्थ है – जो आपको अपनी गोद में लेकर सुख और विश्राम प्रदान करे। रात्रि हर बार सुखदायक होती है, सभी गतिविधियाँ ठहर जाती है। सब कुछ स्थिर और शांतिपूर्ण हो जाता है, पर्यावरण शांत हो जाता है, शरीर थकान के कारण निंद्रा में चला जाता है। शिवरात्रि गहन विश्राम की अवस्था है। जब मन, बुद्धि और अहंकार दिव्यता की गोद में विश्राम करते है तो वह वास्तविक विश्राम है। इसलिए यह उत्सव शरीर व मन की कार्य प्रणाली को विश्राम देने का उत्सव है …।