वाराणसी। ग्रहण योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बनने वाला एक अशुभ योग माना जाता है जिसका किसी कुंडली में निर्माण जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा कर सकता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में यदि सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव पड़ता हो, तब भी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु का स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस योग के बनने के पश्चात भी वास्तव में यह दोष कुंडली में या तो बनता ही नहीं है या फिर इसका बल बहुत कम होता है जिसके कारण यह योग जातक को कोई विशष अशुभ फल नहीं दे पाता। यहां पर इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ बनने वाले कुछ संयोग कुंडली में ग्रहण योग न बना कर कोई शुभ अथवा बहुत शुभ योग भी बना सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में शुभ केतु का शुभ सूर्य के साथ संबंध जातक को किसी सरकारी संस्था में लाभ, प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाला पद दिलवा सकता है तथा यह योग जातक को बहुत योग्य तथा सक्षम पुत्र भी प्रदान कर सकता है जो जातक के लिए बहुत भाग्यशाली तथा शुभ सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार किसी कुंडली में शुभ राहु के चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने पर शक्ति योग बन सकता है तथा इस प्रकार का शक्ति योग जातक को ऐश्वर्य, सुख सुविधा, किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्था में लाभ तथा प्रभुत्व वाला कोई पद आदि भी प्रदान कर सकता है। इस प्रकार चन्द्र राहु से बनने वाले शक्ति योग के प्रभाव में आने वाले जातक ग्रहण योग के अशुभ फलों से बिल्कुल विपरीत शक्ति योग के शुभ फल प्राप्त करते हैं जिससे एक बार फिर यह सिद्ध हो जाता है कि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु का सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ संबंध कुंडली में केवल ग्रहण योग ही नहीं बनाता बल्कि यह संबंध कुंडली में किसी शुभ योग का निर्माण भी कर सकता है। इस लिए किसी कुंडली में केवल राहु अथवा केतु के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ संबंध के आधार पर ही कुंडली में ग्रहण योग के बनने का निर्णय नहीं लेना चाहिए तथा कुंडली में राहु, केतु, सूर्य और चन्द्रमा के बल, स्वभाव तथा स्थिति का भली भांति निरीक्षण करने के पश्चात ही यह निर्णय लेना चाहिए कि कुंडली में इन ग्रहों के संयोग से ग्रहण योग बन रहा है अथवा शक्ति योग जैसा कोई शुभ योग।