स्वामी श्रद्धानंद के जीवन का मूलाधार था राष्ट्र सेवा

*स्वामी श्रद्धानंद के जीवन का मूलाधार था राष्ट्र सेवा*

*स्वामी श्रद्धानन्द ने की थी गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय की स्थापना*

 

■ अमर शहीद स्वामी श्रद्धानन्द का 98वां बलिदान स्मृति दिवस समारोह मनाया

■ सर्वप्रथम आगरा में ही किया था स्वामी श्रद्धानन्द ने आंदोलन का सूत्रपात

 

आगरा। राष्ट्र सेवा ही स्वामी श्रद्धानंद के जीवन का मूलाधार था। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने असंख्य व्यक्तियों को आर्य समाज के माध्यम से पुनः वैदिक धर्म में दीक्षित कराया। सर्वप्रथम गैर-हिन्दुओं व आगरा के मालखाने राजपूतों को पुनः स्वधर्म में लाने के लिये शुद्धि आन्दोलन सूत्रपात किया। कुछ सांप्रदायिक लोग उनसे नाराज हो गए और 23 दिसंबर 1926 को एक मतांध सांप्रदायिक ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। ये कहना था आर्य समाज राजा की मंडी के तत्वावधान में राजा की मंडी स्थित आर्य समाज मंदिर में आयोजित अमर शहीद स्वामी श्रद्धानन्द के 98वें बलिदान दिवस समारोह में सहारनपुर से आये मुख्य वैदिक प्रवक्ता शिवकुमार शास्त्री का। उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने अंग्रेजों के समक्ष सिर उठा कर देश सेवा, त्याग व दृढ संकल्प का परिचय दिया | उन्होंने अपने कर्मों द्वारा यह प्रमाणित कर दिखाया कि मानव जन्म से नहीं, बल्कि कर्मों से महान बनता है।

 

बदायूं से आयी भजनोपदेशिका अलका आर्या ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द ने पश्चिमी शिक्षा की जगह संस्कारित गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को अपनाने पर बल दिया। स्वयं की बेटी अमृत कला को जब उन्होंने ‘ईसा-ईसा बोल, तेरा क्या लगेगा मोल’ सुना तो कंधे पर झोला टांग कर गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए चंदा इकट्ठा करने घर से निकल पड़े। श्रद्धानंद ने यह घोषणा की थी कि जब तक गुरुकुल के लिए 30 हजार रुपए इकट्ठे नहीं हो जाते तब तक वह घर में पैर नहीं रखेंगे। उन्होंने घर-घर घूमकर न सिर्फ 40 हजार रुपये इकट्ठे किए बल्कि अपना पूरा पुस्तकालय, प्रिंटिंग प्रेस और जालंधर स्थित कोठी भी गुरुकुल पर न्योछावर कर दी। 1902 में हरिद्वार के पास ग्राम कांगड़ी में उन्होंने गुरुकुल की स्थापना की | सुश्री आर्या ने अपने भजन स्वामी श्रद्धानन्द प्यारा है….. ये आर्य समाज सभी जग में वेदो का नाद गुंजायमान…., जब उसका कोई रूप नहीं है किसको भोग लगाऊं….. आर्यों के हो तुम हो प्राण ऋषि दयानन्द आदि भजनों से आर्यजनों को भावविभोर कर दिया। भजनों के माध्यम से स्वामी श्रद्धानंद जी के महान कार्यों का गुणगान किया। इससे पूर्व प्रातः 8 बजे से 11 कुण्डीय यज्ञ आचार्य सोमप्रकाश दीक्षित ने संपन्न कराया।

 

*आज मिलेगा आर्य सम्मान 2024*

आर्य समाज राजा मंडी के मंत्री राजीव दीक्षित ने बताया कि सोमवार को पुनः 11 कुण्डीय यज्ञ, सत्संग और भजनों से समारोह से बैकुण्ठ धाम बन जायेगा। आज आर्य समाज पर सम्पूर्ण जीवन न्योछावर करने पर इस वर्ष, 2024 का आर्य सम्मान भी दिया जायेगा। कार्यक्रम का संचालन वीरेंद्र आर्य ने किया। इस अवसर पर प्रधान देव प्रकाश शर्मा, मंत्री राजीव दीक्षित, कोषाध्यक्ष डॉ.संजय कमठानिया, संयोजक आनंद शर्मा, अरविन्द तिवारी, डॉ. नीरज स्वरूप, विजय अग्रवाल, डॉ वीरेंद्र खण्डेलवाल, नीलम दीक्षित, प्रेमा कनवर, रामनिवास भारद्वाज, अवनींद्र गुप्ता, वीरेंद्र कनवर, सीए मनोज खुराना, अनुज आर्य, रामप्रकाश गुप्ता, सुभाष आर्य आदि मौजूद रहे।

 

*कौन थे स्वामी श्रद्धानन्द*

पंजाब के जालंधर जिले के गांव तलवन में पिता नानकचंद के घर 22 फरवरी, 1856 को जन्मे मुशीराम नामक एक बच्चे किलकारी गूंजी। बाद में इसी किलकारी ने स्वामी श्रद्धानन्द बनकर समस्त धर्म और देशद्रोहियों की नींद उड़ाकर रख दी। महात्मा की उपाधि गांधी जी ने दी और वे महात्मा मुंशीराम के नाम से जाने जाने लगे। वर्ष 1917 में उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और वे स्वामी श्रद्धानंद के रूप में जाने गए।

गोविन्द शर्मा

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