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महाराज का 43 वां निकुंज लीला प्रविष्ट महोत्सव

Report Pawan Gupta Mathura 

वृन्दावन।बिहारी पुरा क्षेत्र स्थित ठाकुर श्रीराधा सनेह बिहारी मंदिर में श्रीराधा सनेह बिहारी सेवा ट्रस्ट के द्वारा बांके बिहारी मंदिर के सेवायत व श्रीमद्भागवत के प्रकांड विद्वान निकुंजवासी आचार्य मूलबिहारी गोस्वामी महाराज का 43 वां निकुंज लीला प्रविष्ट महोत्सव प्रख्यात संतों, विप्रों व धर्माचार्यों की उपस्थिति में अत्यंत श्रद्धा एवं धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर आयोजित संत-विद्वत संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए श्रीनाभापीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु स्वामी सुतीक्ष्णदास देवाचार्य महाराज व भक्ति वेदांत स्वामी मधुसूदन गोस्वामी महाराज ने कहा कि निकुंजवासी आचार्य मूलबिहारी गोस्वामी महाराज श्रीधाम वृन्दावन की बहुमूल्य निधि थे।साथ ही वे श्रीहरीदासी सम्प्रदाय के प्रमुख स्तंभ थे। ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य करन कृष्ण गोस्वामी व पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ ने कहा कि निकुंजवासी आचार्य मूलबिहारी गोस्वामी महाराज श्रीमद्भागवत के प्रकांड विद्वान थे।साथ ही वे श्रोत मुनि आश्रम में चलने वाले गुरु गंगेश्वरानंद संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य भी रहे थे।आचार्य रामविलास चतुर्वेदी व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि श्रीराधासनेह बिहारी सेवा ट्रस्ट के द्वारा निकुंजवासी आचार्य मूलबिहारी गोस्वामी महाराज की पुण्य स्मृति में यदि एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की जाए, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ी श्रृद्धांजलि होगी।चतु:सम्प्रदाय के श्रीमहंत फूलडोल बिहारीदास महाराज व महामंडलेश्वर स्वामी कृष्णानंद महाराज ने कहा कि निकुंजवासी आचार्य मूलबिहारी गोस्वामी महाराज विश्वविख्यात ठाकुर बांके बिहारी महाराज के अंगसेवी थे।उन्होंने आजीवन भगवान श्रीकृष्ण की प्राचीन लीलाओं का समूचे विश्व में प्रचार-प्रसार किया।ऐसी पुण्यात्माओं को हम सच्चे हृदय से प्रणाम करते हैं। इस अवसर पर आचार्य पीठाधीश्वर यदुनंदनाचार्य महाराज, भागवताचार्य स्वामी बलरामाचार्य महाराज, आचार्य बद्रीश महाराज, पंडित बिहारीलाल शास्त्री, आचार्य नरोत्तम शास्त्री, पंडित रामकृष्ण गोस्वामी, गोस्वामी कृष्णमुरारी शास्त्री, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, बालकृष्ण शर्मा उर्फ बालो पंडित,प्रदीप जैन, कपिलानंद चतुर्वेदी, शिक्षाविद् मदन गोपाल बनर्जी,

वेदांत आचार्य, गिर्राज शरण शर्मा, पंडित नत्थूराम शास्त्री एवं अवनीश शास्त्री आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।संचालन आचार्य रामविलास चतुर्वेदी ने किया।

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