“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
‘मेरा नाथ तू है, मेरा नाथ तू है
नहीं मैं अकेला, मेरे साथ तू है’
विराट भक्ति सत्संग महोत्सव का तीसरा दिवस
शुक्रवार। विश्व जागृति मिशन मुम्बई मण्डल द्वारा आयोजित (क्रिकेट एकेडमी परिसर) विराट भक्ति सत्संग महोत्सव में आज के मल्यार्पण कार्यक्रम में श्री चन्द्रकांत मोदी, श्री महेश गुप्ता, श्रीमती नीलम पाठक तथा कैथल मण्डल के प्रधान श्री हरिराम गुप्ता ने गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज का स्वागत किया। व्यास पूजन में श्री गोविन्द बहन, श्री सोहन रांका ने भाग लिया। आज तीसरे दिवस सायंकालीन सत्र का शुभारंभ महामृतुंजय मंत्र जप के साथ किया। पूज्यश्री के द्वारा गाया गया भजन ‘मेरा नाथ तू है, मेरा नाथ तू है’ सुनकर उपस्थित भक्तजन झूम उठे।
सत्संग सभा को सम्बोधित करते हुए सदगुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि पद्म पुराण में स्वर्ग जाने वाले व्यक्तियों के लक्षण को बताते हुए स्वय यमराज ने कहा है जो व्यक्ति अपने सीमित साधनों में भी थोड़ा भाग सेवा के लिए अर्पित करता है, दण्डित करने का सामर्थ्य रखकर भी क्षमा करना जानता है, युवावस्था में भी संयमित और अनुसाशित जीवन जीता है, समस्त साधन सम्पन्न होने पर भी धर्म का मार्ग नहीं छोड़ता है, स्वयं पर नियंत्रण रखता है, प्राणी मात्र के प्रति दया की भावना रखता है। ऐसा व्यक्ति अपने पुण्य कर्म के कारण स्वर्ग को जाता है। धार्मिक व्यक्ति अपने मस्तिष्क में विवेकिनी बुद्धि, आंखों में लज्जा, दिल में आत्म विश्वास और शरीर में आरोग्यता को महत्व देता है। जबकि अधार्मिक व्यक्ति मस्तिष्क में क्रोध, आंखों में लालच, दिल में भय एवं शरीर में रोग को धारण करता है। आत्म कल्याण के लिए जीवन में धर्म को महत्व दें। इसी से जीवन का कल्याण है।
गीता के अनुसार परमात्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए श्रद्धेय श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि परमात्मा ही इस संसार का स्वामी है। संसार में गति उसी के कारण ही दिखाई देती है। सभी के शुभ और अशुभ कर्मों का फलदाता परमात्मा ही है। संसार की उत्पत्ति, पालन, संहार का कारण परमात्मा ही वह प्राणिमात्र का एकमात्र आश्रय है। इसलिए संसार के कण कण में उस परमात्मा को व्यापत मानकर उसकी भक्ति करें।